हिंदी : राष्ट्रीय अस्मिता की आधारशिला
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
भारतीय मनीषा का यह वचन स्पष्ट प्रतिपादित करता है कि किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसके विज्ञान, अर्थनीति अथवा राजनीति मात्र पर नहीं, प्रत्युत उसकी मातृभाषा के संवर्धन और समुन्नयन पर अवलम्बित होती है। भाषा ही संस्कृति की वाहिका है, वही विचारों की जीवन-रेखा और आत्मा की अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है।
हिंदी, भारतीय जनमानस की आत्मा स्वरूपिणी भाषा है। इसकी जड़ों में संस्कृत का वह पावन रस है, जिसने इसे अनन्त भाव-व्यंजना का सामर्थ्य प्रदान किया। सरलता इसकी शोभा है और सरसता इसकी प्राणवायु। यही कारण है कि विविधता से भरे इस राष्ट्र में हिंदी ने परस्पर सम्पर्क की सेतु-भूमिका निभाई है।
विश्व-व्यापी परिदृश्य में हिंदी आज ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, पत्रकारिता और जनसंचार के विस्तृत क्षितिज पर अपना परचम फहरा रही है। तथापि, इसके यथोचित प्रचार-प्रसार और शुद्ध प्रयोग की आवश्यकता आज भी तीव्र है। सरकार को चाहिए कि शिक्षा, प्रशासन और तकनीकी क्षेत्र में हिंदी का वर्चस्व सुदृढ़ करने हेतु ठोस एवं दूरदर्शी नीतियाँ गढ़े। साथ ही प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपने व्यवहार, लेखन और वाणी में हिंदी को गौरवपूर्वक स्थान दे।
विशेषतः हिंदी साहित्यकारों एवं कवियों से प्रार्थना है कि वे भाषा की पवित्रता और शुद्धता का अनुपालन करें। यांत्रिक शब्दावली और अपभ्रंश के अतिरेक से बचकर वे हिंदी की सुषमा और सुदीप्ति को अक्षुण्ण रखें।
हिंदी केवल बोली जाने वाली भाषा नहीं, यह हमारे आत्मगौरव की ध्वजा है, हमारे राष्ट्र की आत्मा है। आइए, इस हिंदी दिवस पर हम सब मिलकर संकल्प लें कि हिंदी को उसके यथोचित सम्मान और वैश्विक प्रतिष्ठा तक पहुँचाएँगे।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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