"कर्म का न्याय और समय की विधि"
पंकज शर्मा
मानव जीवन में कर्म और उसके फल का अनुपात अति सूक्ष्म एवं प्रायः अप्रत्यक्ष होता है। अक्सर हम पाप के अनिष्ट परिणामों को तत्काल अनुभव करने की आशा करते हैं, परन्तु वास्तविकता में उनका प्रभाव समय की गहनता और परिस्थितियों के सम्मिलन से ही प्रकट होता है। जैसे जहरीला बीज मिट्टी में कुछ समय पश्चात् अंकुरित होकर वृक्ष का रूप धारण करता है, वैसे ही हमारे कर्मों का परिणाम भी अपने नियत समय पर प्रकट होता है। अतः यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने हर कर्म की नैतिक समीक्षा करे, क्योंकि प्रत्येक कृत्य अपने भीतर दबी हुई ऊर्जा के अनुसार अनिवार्य रूप से फलित होगा।
समय के पटल पर कर्मों का यह न्याय अचूक और अटल है। पाप चाहे सूक्ष्म हो या महान, उसका प्रभाव उसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करता है जैसे मौसम की मृदुल बदलियाँ अकस्मात् वर्षा की तैयारी करती हैं। इसे समझने का मार्ग सरल नहीं है, किंतु जीवन के अनुभव और आत्म-निरीक्षण हमें यह सिखाते हैं कि कोई भी अनैतिक कर्म शून्य में विलीन नहीं होता। प्रत्येक कर्म एक गूढ़ गूँज छोड़ता है, और उसी गूँज का प्रतिध्वनि समय के संग प्रतिफलित होती है। अतः जीवन में धर्म, सत्य और संयम के मार्ग पर चलना ही सुरक्षा और सुख की दीर्घकालिक कुंजी है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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