गुरु और गुरुदक्षिणा
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश">>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<
गुरु स्वयं को दीप सा जलाकर,
शिष्य का जीवन रोशन करते।
ना कुछ मांगें, ना होती चाहत,
बस सच्चे मन से ज्ञान भरते।।
ज्ञान दीप, जग में जला कर,
अंधकार को दूर भगाते।
संस्कारों की छाया दे कर,
जीवन को सच्चा पथ दिखाते।।
शब्दों की शक्ति को बताकर,
सपनों को सुंदर आकार देते।
संशय हो या कठिन हो रस्ते,
सदैव दिल के पास वो रहते।
गुरु को कोई क्या दे सकेगा,
जिसने हमें जीना सिखाया?
जिसने अज्ञान के तम में भी,
ज्ञान का सूरज दिखलाया।
सच्ची दक्षिणा तो बस इतनी
गुरु के पथ पर हम चलें सदा।
उनके आदर्शों को अपना कर,
सेवा भाव से कर्ज करें अदा।।
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