नेपाल - आंदोलन की आग, जेलब्रेक, मीडिया पर हमला और कूटनीतिक हलचल
लेखक जितेन्द्र कुमार सिन्हा दिव्य रश्मि के उपसम्पादक है |नेपाल इन दिनों भीषण उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम पर बनी राजनीतिक स्थिरता अचानक से हिल गई है। राजधानी काठमांडू से लेकर ललितपुर और देश के अन्य हिस्सों तक जनता का आक्रोश सड़कों पर फूट पड़ा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि प्रदर्शनकारी न केवल सरकारी इमारतों पर हमला कर रहे हैं, बल्कि मीडिया हाउस तक उनकी हिंसा की चपेट में आ गया है। ललितपुर की नक्खू जेल से 1500 कैदियों का फरार होना, पुलिस अधिकारियों की मौत और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का ठप होना इस संकट की भयावहता को स्पष्ट करता है।
यह स्थिति केवल नेपाल तक सीमित नहीं रही है, बल्कि इसका असर भारत और दक्षिण एशियाई राजनीति पर भी पड़ रहा है। भारत ने अपने यहां स्थित नेपाली दूतावास की सुरक्षा बढ़ा दी है और काठमांडू जाने वाली उड़ानों को भी रद्द कर दिया गया है।
नेपाल का सबसे बड़ा और प्रभावशाली मीडिया संस्थान कांतिपुर मीडिया ग्रुप सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में अग्रणी रहा है। लेकिन जब आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने इस संस्थान के दफ्तर को आग के हवाले कर दिया तो यह केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा प्रहार था।
मीडिया समाज का दर्पण होता है, लेकिन जब जनता का गुस्सा इतना उग्र हो कि वह इस दर्पण को ही तोड़ दे, तो यह संकेत देता है कि अविश्वास और असंतोष की जड़ें गहरी हो चुकी हैं। कांतिपुर पर हमला बताता है कि आंदोलन केवल सरकार-विरोधी नहीं रहा, बल्कि व्यवस्था-विरोधी हो चुका है।
ललितपुर जिला के “नक्खू जेल” नेपाल की सबसे सुरक्षित जेलों में मानी जाती थी। यहां से एक साथ 1500 कैदियों का फरार होना अभूतपूर्व घटना है। इसमें हत्या, लूट, नक्सली गतिविधियों और राजनीतिक हिंसा से जुड़े अपराधी शामिल बताए जाते हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस जेल में नेपाल की राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (RSP) के अध्यक्ष रबि लामिछाने भी कैद थे। उनका जेल से गायब होना राजनीतिक अस्थिरता को और गहरा सकता है। विरोधियों का आरोप है कि यह सब पूर्व-नियोजित था और जेल प्रशासन की मिलीभगत के बिना संभव नहीं।
इतनी बड़ी तादाद में कैदियों का भाग जाना न केवल नेपाल की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि आम जनता की सुरक्षा को भी खतरे में डाल देता है। अब राजधानी समेत अन्य जिलों में इन फरार कैदियों की तलाश के लिए सेना तक को तैनात किया जा सकता है।
नेपाल का अंतरराष्ट्रीय प्रवेशद्वार “त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट, काठमांडू” पूरी तरह ठप कर दिया गया है। सभी उड़ानों को रद्द कर दिया गया है। यह निर्णय सुरक्षा कारणों से लिया गया है क्योंकि आशंका जताई जा रही थी कि आंदोलनकारी एयरपोर्ट पर भी कब्जा करने की कोशिश कर सकते हैं।
एयरपोर्ट बंद होने का सीधा असर पर्यटन और व्यापार पर पड़ेगा। नेपाल की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है, और जब विदेशी सैलानियों की आवाजाही बंद होगी, तो देश को करोड़ों डॉलर का नुकसान झेलना पड़ेगा।
भारतीय एयरलाइन एअर इंडिया ने भी दिल्ली-काठमांडू की अपनी सभी उड़ानें रद्द कर दी हैं। यह केवल नेपाल की समस्या नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के परिवहन नेटवर्क को प्रभावित करेगा।
काठमांडू की कोटेश्वर पुलिस चौकी पर तैनात तीन पुलिस अधिकारियों की मौत ने यह साबित कर दिया है कि हालात अब सामान्य हिंसक विरोध से कहीं अधिक खतरनाक हो चुका है। पुलिस चौकी पर हमले का मतलब है कि प्रदर्शनकारी अब सीधे राज्य के प्रतीकों को चुनौती देने लगा है।
नेपाली पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने स्थिति को नियंत्रण में लेने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद भीड़ और फरार कैदियों के संगठित गिरोहों के सामने उनकी ताकत कमजोर पड़ गई। इससे आम नागरिकों में भय का माहौल है।
नेपाल सरकार ने हालात को देखते हुए देशभर के स्कूलों में दो दिन की छुट्टी घोषित कर दी है। यह निर्णय बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया। लेकिन शिक्षा पर इसका असर गहरा है। लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और बंद-हड़ताल से नेपाल का शैक्षणिक ढांचा प्रभावित होता रहा है। इस बार भी छात्र सबसे बड़े शिकार बन रहे हैं।
नेपाल के मौजूदा संकट की जड़ें राजनीतिक अस्थिरता में छिपी हैं। 2015 में लागू संविधान के बाद भी कई जातीय और क्षेत्रीय समूह असंतुष्ट हैं। महंगाई, बेरोजगारी और पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था का लगातार गिरना। राजनीतिक दलों पर जनता का भरोसा खत्म हो चुका है। नेपाल की राजनीति पर भारत, चीन और अमेरिका के प्रभाव को लेकर भी विवाद है। इन सब कारणों ने मिलकर जनता के गुस्से को विस्फोटक बना दिया।
रबि लामिछाने एक जाने-माने टीवी पत्रकार से नेता बने हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (RSP) की स्थापना की थी और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में उन पर वित्तीय अनियमितताओं और विदेशी पासपोर्ट रखने के आरोप लगा, जिसके चलते उन्हें जेल में डाल दिया गया। अब जब वे नक्खू जेल से फरार हुए हैं, तो सवाल उठता है कि क्या वे जनता के नायक बनकर उभरेंगे या अराजकता के प्रतीक? समर्थकों का मानना है कि उन्हें षड्यंत्र के तहत फंसाया गया, जबकि विरोधियों का कहना है कि यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
भारत नेपाल की स्थिति पर गहरी नजर बनाए हुए है। दिल्ली स्थित नेपाल दूतावास की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। यह इसलिए जरूरी था क्योंकि आंदोलन का असर प्रवासी नेपाली समुदाय तक पहुंच सकता है। भारत-नेपाल की खुली सीमा भी चिंता का कारण है। फरार कैदी और अराजक तत्व आसानी से भारत की सीमा में घुस सकते हैं। इससे बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे सीमावर्ती राज्यों की सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है।
नेपाल की अस्थिरता केवल उसकी आंतरिक समस्या नहीं है। यह भू-राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत नेपाल को अपनी सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानता है। चीन लगातार नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है। अमेरिका भी इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत नेपाल को अपने खेमे में रखना चाहता है। इस स्थिति में नेपाल का संकट दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
नेपाल की आम जनता इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। स्कूल बंद, रोजगार ठप, व्यापार चौपट और कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने से नागरिक भय और असुरक्षा में जी रहे हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि हर संकट नई संभावनाओं का रास्ता खोलता है। क्या यह आंदोलन नेपाल को नई राजनीतिक दिशा देगा या इसे और गहरे अराजकता में धकेल देगा? यह आने वाला समय बताएगा।
नेपाल इस समय इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। कांतिपुर मीडिया हाउस पर हमला, नक्खू जेल से कैदियों का फरार होना, काठमांडू एयरपोर्ट का बंद होना और पुलिस अधिकारियों की मौत, यह सब केवल घटनाएं नहीं हैं, बल्कि उस गहरे संकट का प्रतीक हैं जिसमें नेपाल फंस चुका है। भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें नेपाल पर टिकी हुई हैं। यदि राजनीतिक नेतृत्व समय रहते हालात को संभालने में विफल रहा, तो यह संकट न केवल नेपाल, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। -----------
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