जिसका हृदय सदा शीत सा
जिनका हृदय सदा शीत सा ,जिनका हृदय सदा मीत सा ,
सदाचार हर हृदय में जगाता ,
गीत सीखाता सदा प्रीत का ।
आकर्षक होते जो चित्त का ,
नैतिक शिक्षा जिनके नित का ,
गुणगान होते जिनके कृत का ,
सरस सुंदर व्यवहृत गीत का ।
शिक्षक होते चरित्र निर्माता ,
शिक्षक ही होते राष्ट्र विधाता ,
शिक्षक से ही राष्ट्र भी शिक्षित ,
शिक्षक से गुरु शिष्य का नाता ।
शिक्षक का यह शिक्षा नीति ,
आदर स्नेह शील गुण प्रीति ,
सदा आदर्श हो जहॅं शिक्षक ,
सदा नैतिकता जिनकी रीति ।
शिक्षक शरण मैं शीघ्र जाऊॅं ,
जीवन अपना सफल बनाऊॅं ,
जिनकी शिक्षा से नित नहाऊॅं ,
चरण कमल नित शीश नवाऊॅं ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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