तीर्थ यात्रा स्थलों का बंद होना : ईश्वर का संकेत और मानव के लिए चेतावनी

डॉ राकेश दत्त मिश्र
भारत भूमि को देवभूमि कहा गया है। यहाँ का प्रत्येक कण, प्रत्येक नदी, प्रत्येक पर्वत और प्रत्येक तीर्थ स्थल अपने भीतर दिव्यता और आध्यात्मिकता का भंडार समेटे हुए है। सदियों से भक्त इन पवित्र स्थलों की यात्रा कर ईश्वर के साक्षात दर्शन का अनुभव करते रहे हैं। किंतु हाल के वर्षों में यह देखा जा रहा है कि अनेक प्रमुख तीर्थ यात्रा स्थलों पर अचानक व्यवधान उत्पन्न हो जाता है।
केदारनाथ धाम, बद्रीनाथ धाम, हेमकुण्ड साहिब, माता वैष्णो देवी धाम, ऋषिकेश के घाट, मणिमहेश यात्रा, किन्नर कैलाश, धारी देवी और अमरनाथ यात्रा – ये सभी ऐसे पवित्र स्थल हैं जहाँ भक्ति, श्रद्धा और तपस्या की परंपरा जीवित रही है। किंतु आज समय-समय पर इनके मार्ग बंद हो जाते हैं, यात्राएं स्थगित करनी पड़ती हैं और भक्त दर्शन से वंचित हो जाते हैं।
क्या यह केवल प्राकृतिक कारणों का परिणाम है या फिर यह कोई गहरी चेतावनी है?
1. तीर्थ यात्रा का ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व
भारतीय संस्कृति में तीर्थ यात्रा का अत्यंत विशेष स्थान है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में वर्णित है कि मनुष्य जब ईश्वर की शरण में जाता है तो उसका जीवन पवित्र होता है।
स्कंद पुराण में उल्लेख है – “तीर्थयात्रा से पाप नष्ट होते हैं, मन शुद्ध होता है और आत्मा परमात्मा के समीप पहुँचती है।”
महाभारत में भी तीर्थ यात्रा को आत्मिक शुद्धि का साधन बताया गया है।
ऋषियों ने कहा है कि गंगा, यमुना, नर्मदा, गंडक, गोदावरी और सरस्वती जैसी नदियों के किनारे बसे तीर्थ केवल स्थूल यात्रा नहीं हैं, बल्कि आत्मा की गहन साधना के केंद्र हैं।
इसलिए तीर्थ यात्रा केवल पर्यटन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना का मार्ग है।
2. वर्तमान समय में तीर्थों का बदलता स्वरूप
पिछले कुछ दशकों में यह देखा जा रहा है कि तीर्थ स्थलों का स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है।
जहाँ पहले लोग मौन साधना और भक्ति में डूबे रहते थे, वहीं आज कैमरे, मोबाइल और सोशल मीडिया के प्रदर्शन ने भक्ति का स्वरूप बदल दिया है।
श्रद्धालु अब ‘सेल्फ़ी प्वॉइंट’ खोजते हैं, न कि ‘साधना स्थल’।
दुकानों, होटलों, शोरगुल और भीड़ ने उन पवित्र स्थानों की शांति भंग कर दी है।
इस परिवर्तन से तीर्थ स्थलों की आत्मा आहत हो रही है।
3. ईश्वर और प्रकृति द्वारा दिए जा रहे संकेत
जब-जब मानव अपने कर्तव्यों और आस्था से भटकता है, तब-तब प्रकृति उसे संकेत देती है।
कभी भूस्खलन होता है, कभी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
कभी बाढ़ का प्रकोप, तो कभी हिमपात या भारी वर्षा यात्राओं को रोक देती है।
हाल ही में कई बार अमरनाथ यात्रा और केदारनाथ धाम प्राकृतिक आपदाओं के कारण बंद हुए।
यह सब केवल प्राकृतिक घटनाएँ नहीं हैं। यह भी संभव है कि यह ईश्वर का संदेश हो कि – “तीर्थ यात्रा को पर्यटन न बनाओ। यहाँ केवल भक्ति भाव से आओ।”
4. आडंबर बनाम भक्ति
आज भक्त कम और पर्यटक अधिक दिखाई देते हैं। लोग ईश्वर के चरणों में बैठकर ध्यान लगाने की बजाय कैमरे के सामने खड़े होकर तस्वीर खिंचवाने में व्यस्त हैं।
भक्ति का अर्थ है – समर्पण, श्रद्धा, विनम्रता और ईश्वर के प्रति आस्था।
आडंबर का अर्थ है – दिखावा, प्रदर्शन और बाहरी दिखावटी भाव।
जहाँ आडंबर बढ़ता है, वहाँ ईश्वर का साक्षात्कार कठिन हो जाता है। यही कारण है कि तीर्थ स्थलों की पवित्रता क्षीण हो रही है।
5. ग्रंथों और संतों की वाणी में तीर्थ
संत कबीर ने कहा था – “तीर्थ गए क्या होत है, मन न गया साथ।”
अर्थात यदि मन शुद्ध नहीं है तो तीर्थ यात्रा भी व्यर्थ है।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्पष्ट किया कि “भक्ति के बिना तीर्थ व्यर्थ हैं।”
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि तीर्थ यात्रा का उद्देश्य केवल ईश्वर से जुड़ना है, न कि आनंद-प्रदर्शन करना।
6. क्या हम गलती कर रहे हैं?
जब हम तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थल बना देते हैं तो हम अनजाने में ईश्वर का अपमान करते हैं।
शराब, मांसाहार और अनुशासनहीनता तीर्थ मार्गों पर बढ़ रही है।
प्रकृति का दोहन, प्लास्टिक और गंदगी पवित्र नदियों को प्रदूषित कर रही है।
व्यवसायिक मानसिकता ने तीर्थ को ‘धन कमाने का साधन’ बना दिया है।
यही वह गलती है जिससे भगवान भी हमसे मुंह मोड़ रहे हैं।
7. समाधान : तीर्थ को तीर्थ ही रहने दें
अब आवश्यकता है कि हम अपने दृष्टिकोण को बदलें।
श्रद्धा और अनुशासन के साथ यात्रा करें।
प्रकृति और वातावरण की रक्षा करें। तीर्थों पर गंदगी फैलाना बंद करें।
भक्ति भाव को सर्वोपरि रखें। पर्यटन की मानसिकता छोड़ें।
आडंबर से बचें। मौन, ध्यान और साधना को जीवन में उतारें।
तीर्थ यात्रा को तपस्या समझें। यह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मा की साधना है।
आज केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ, वैष्णो देवी, मणिमहेश, किन्नर कैलाश, धारी देवी और हेमकुण्ड साहिब जैसे पवित्र धाम समय-समय पर बंद हो रहे हैं। यह मात्र संयोग नहीं, बल्कि मानव को चेतावनी है।
ईश्वर कह रहे हैं – “यदि तीर्थों को केवल पर्यटन का केंद्र बनाओगे, तो मेरे दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे।”
इसलिए हमें यह समझना होगा कि तीर्थ यात्रा का अर्थ केवल स्थान की यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है। जब हम शुद्ध मन, विनम्रता और भक्ति भाव से तीर्थ करेंगे, तभी इन पवित्र धामों की कृपा और ईश्वर का सान्निध्य हमें प्राप्त होगा।
🕉️ आखिरकार, तीर्थ यात्रा हमें याद दिलाती है कि जीवन का उद्देश्य केवल भोग नहीं, बल्कि योग और भक्ति है। और यही संदेश इन बंद हो रहे धामों के माध्यम से हमें ईश्वर बार-बार दे रहे हैं।
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