चिंता चिता है
वर्तमान को छोड़करकल को जीते हो।
देखा नही जिसे फिर भी
उस कल को जीते हो।
कल को देखकर भी
कल को जिये रहे हो।
और वर्तमान में यह गलती
बार-बार कर रहे हो।।
डर मृत्यु का तो
सब को लगता है।
जबकि सबको पता है
कि मरना एक दिन है।
फिर भी मृत्यु से क्यों
तू भागता फिरता है।
जबकि हकीकत को
अच्छे से समझता है।।
उम्र हो चुकी है
अब तेरी सौ की।
पर फिर भी जीने की
बहुत चाहत रखता है।
बहू बेटी दामाद और
नाती पोते देख चुका है।
फिर भी कल के लिए
आज में बहुत चिंतित है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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