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"अनुकूल समय की कुंजी"

"अनुकूल समय की कुंजी"


​जीवन की यात्रा में, सफलता केवल कर्म की तीव्रता पर नहीं, अपितु काल की अनुकूलता पर भी निर्भर करती है। जिस प्रकार बीज सही संयोजन की प्रतीक्षा करता है, वैसे ही हमारे साधारण या योजनाहीन प्रयास भी, जब नियति के अनुकूल 'समय' से संयुक्त होते हैं, तब वे अत्यंत सफल एवं सार्थक सिद्ध होते हैं। यह बोध हमें सिखाता है कि विफलताओं के क्षण में हताश न हों। हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक छोटे प्रयास ऊर्जा के कण हैं जो अंतरिक्ष में विलीन नहीं होते, बल्कि सही मुहूर्त की प्रतीक्षा करते हुए संचित होते रहते हैं, ताकि अनुकूल समय के आगमन पर वे विशाल लक्ष्य के रूप में फलित हो सकें।

​​यह सुविचार हमें प्रतीक्षा के विज्ञान एवं सतत प्रयत्न के दर्शन का सार समझाता है। जब परिश्रम का प्रतिफल नहीं मिलता, तब यह धैर्य की परीक्षा होती है। गहनता यह है कि जो प्रयास आज 'साधारण' लगते हैं, वे भविष्य की सफलता की अनिवार्य नींव होते हैं। समय का अनुकूल होना केवल भाग्य नहीं, अपितु हमारे अदृश्य, संचित कर्मों का प्रकटीकरण है। इसलिए, हमें प्रयास करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जब कालचक्र अनुकूलता की धुरी पर घूमता है, तब अतीत के वे सभी छोटे, साधारण कार्य एक अखंड शक्ति बनकर उभरते हैं और हमें सुनिश्चित रूप से अभीष्ट लक्ष्य की ओर अग्रसर करते हैं। यही कर्म, काल एवं सिद्धि के त्रिकोण का परम सत्य है।

. "सनातन"

(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)

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