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राजनेता छवि के पीछे कवि: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रचनात्मक पहलू

राजनेता छवि के पीछे कवि: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रचनात्मक पहलू

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके राजनीतिक कौशल, परिवर्तनकारी नेतृत्व और दूरदर्शी शासनात्मक दृष्टिकोण के लिए विश्व स्तर पर पहचाना जाता है। बहुत कम लोग जानते है कि उनके व्यक्तिव का एक पहलू गहन आत्मनिरीक्षण और अभिव्यंजक कवि वाला भी है।

दशकों और भाषाओं में फैले उनके लेखन में एक ऐसे व्यक्ति की भावनात्मक, दार्शनिक और देशभक्ति की गहराई की एक दुर्लभ झलक मिलती हैं जिसे अक्सर केवल राजनीति से सम्बंधित माना जाता है।

उनकी रचनात्मक आवाज़ - कविता, निबंध और पुस्तकों के माध्यम से - आध्यात्मिकता, नेतृत्व, प्रकृति और देशभक्ति पर प्रतिबिंबों को प्रकट करती है।

मोदी की कविता साधना केवल एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति नहीं है - यह उनकी विश्वदृष्टि, उनके भावनात्मक परिदृश्य और आध्यात्मिक विश्वासों का प्रतिबिंब है। राजनीतिक संघर्ष की गहराइयों से लेकर आध्यात्मिक चिंतन की शांति तक, उनके छंद मानवीय अनुभव के व्यापक आयामों को छूते हैं।

मोदी की कविता के विषय

1. देशभक्ति और राष्ट्रीय कर्तव्य

मोदी की कविता अक्सर राष्ट्र के दिल की धड़कन को प्रतिध्वनित करती है, खासकर सामूहिक संघर्ष और विजय के क्षणों के दौरान। उनका लेखन भारत की संप्रभुता और प्रगति के प्रति कर्तव्य, गर्व और अटूट प्रतिबद्धता की भावना से ओत-प्रोत हैं।
उनकी कविताओं के कुछ अंश हैं:

1. कारगिल कविता (1999)

पहले गुजराती अखबारों में प्रकाशित हुई, बाद में मोदी के लेखन के संकलन में शामिल की गई।


· गुजराती: “દરેક જવાન ખેડૂત છે – તે ભાવવ વવજયના બીજ પોતાના લોહીથી વાવે છે, જેથી આપણો આવતીકાલ ક્યારેય કરમાઈ ન જાય.”

· अंग्रेज़ी: "प्रत्येकजवान एक किसान है – अपने खून से भविष्य की जीत के बीज बो रहा है, ताकि हमारा कल कभी न मुरझाए."

टिप्पणी: कारगिल युद्ध के दौरान लिखी गई, यह कृषि कल्पना को मार्शल बलिदान के साथ जोड़ती है।


2. उठों वीर

भाषा: गुजराती

विषय: दृढ देशभक्ति और प्रेरक आह्वान करती कविता में लोगों से आग्रह किया गया है कि वे इस समय की तात्कालिकता को पहचानें और कुछ करे इससे पहलें कि बहुत देर हो जाए। (आंख आ धन्या छे)

3. वंदे मातरम

भाषा: गुजराती

विषय: कविता वंदे मातरम को गीत या नारा से अधिक कई रूपों में महिमामंडित करती है - यह राष्ट्रीय पहचान और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है। (आंख आ धन्या छे)

4. विजय नू पारोड

भाषा: गुजराती

विषय: कविता पुनरुत्थान, सामूहिक संघर्ष और एक आध्यात्मिक जागृति के राष्ट्रीय विषयों को छूती है और जीत की ओर ले जाती है। हालांकि यह सीधे तौर पर किसी राजनीतिक घटना या युद्ध के बारे में नहीं है, लेकिन इसके जागृति, लचीलापन और सामाजिक परिवर्तन का स्वर इसे दृढ़ता से देशभक्ति की कविता बनाता है। (साधना पत्रिका)
5. कारगिल

भाषा: गुजराती

विषय: यह कविता कारगिल युद्ध (1999) के दौरान भारतीय सैनिकों की बहादुरी का सम्मान करती है। यह कारगिल युद्ध को केवल एक युद्ध के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जागृति और शाश्वत गौरव के क्षण के रूप में चित्रित करती है। (आंख आ धन्या छे)
6. अजय शक्ति ईश है भाषा: गुजराती

विषय: कविता में बताया गया है कि यह देशभक्ति का समय है, और एक अजेय शक्ति मौजूद है - जिसे कोई हरा नहीं सकता है। इस प्राचीन राष्ट्र में वीरता और बहादुरी प्रचुर मात्रा में है, और संघ (संगठन) के भीतर, अपार शक्ति निहित है - एक अपराजेय, अदम्य शक्ति। (हस्तलिखित डायरी)


7. उठों लाल! विजय वधावो
भाषा: गुजराती

विषय: कविता कुछ कर गुजरने के लिए एक शक्तिशाली और प्रेरणादायक आह्वान है, जो लोगों से समर्पण और एकता के साथ देश की प्रगति के लिए उठने, प्रयास करने और योगदान करने का आग्रह करती है। (आंख आ धन्या छे)

8. अब क्या तुझको अर्पण करू?
भाषा: हिन्दी

विषय: यह कविता एक गहरी देशभक्ति और भक्तिमय भावना से परिपूर्ण है यानि राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ समर्पण की अभिव्यक्ति है। कवि भारत के प्रति त्याग, कर्तव्य और समर्पण पर गहन विचार करता है और सवाल करता है कि जब सब कुछ - मन, प्रयास और श्रम - पहले ही समर्पित हो चुका है तो और क्या दिया जा सकता है। (हस्तलिखित डायरी)

अब क्या तुझे अर्पण करूं?


तेरे हिस्से पाई मति

और गति भी पाई है

तेरे पदचिह्नो से बने

पथ की हो मैं प्यार करूं

अब क्या तुझे अर्पण करूं?

तपता यौवन लिए

जीवन श्रृंगार से अछूता

मैं

अब क्या तुझे अर्पण करूं?

चांदी के टुकड़ों ने

न पाला है मुझे

और न मैंने पाले है

चंद टुकड़े

अब क्या तुझे अर्पण करुं?

जीवन पुष्प बने श्रृंगार

और आशा बने आधार

फिर लहू बने पसीना

अब क्या तुझे अर्पण करूं?

बस, तेरे सपनों का भारत है

तुझे अर्पण करूं...!


9. सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नही मिटने दूंगा
भाषा: हिन्दी

विषय: यह कविता नरेन्द्र मोदी जी ने कई अवसरों पर सुनाई है।

कविता का विषय राष्ट्रवाद, लचीलेपन और दृढ़ संकल्प के इर्द-गिर्द है। यह देशभक्ति की मजबूत भावना और राष्ट्र की रक्षा और मजबूती के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करती है। (2014 भाषण)

10. अभी तो सूरज उगा है

भाषा: हिंदी और अंग्रेजी

विषय: यह कविता नरेन्द्र मोदी जी ने कई अवसरों पर सुनाई है।

अमरिकी कांग्रेस (हिंदी और अंग्रेजी दोनों में) में शामिल हैं। कुल मिलाकर, कविता देशभक्ति के उत्साह और प्रेरक उत्थान का मिश्रण है, जो लोगों को अपने और अपने देश के लिए एक उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
अभी तो सूरज उगा है
आसमान में सिर उठाकर

घने बादलों को चीरकर

रोशनी का संकल्प ले

अभी तो सूरज उगा है।।
दृढ़ निश्चय के साथ चलकर

हर मुश्किल को पारकर

घोर अंधेरों को मिटाने

अभी तो सूरज उगा है।।

विश्वास की लौ जलाकर

विकास का दीपक लेकर

सपनों को साकार करने

अभी तो सूरज उगा है।।


न अपना

न पराया न

तेरा न मेरा

सबका तेज बनकर

अभी तो सूरज उगा है।।

आज को समेटते

प्रकाश को बिखेरते

चलता और चलता

अभी तो सूरज उगा है।।


विकृति नेप्रकृति को दबोचा

अपनों के ध्वस्त होती आज है

कल बचाने और बनाने

अभी तो सूरज उगा है।।


The Sun Has Just Risen



Rising high in the sky,

piercing through cloud covers,

determined to spread light,

the Sun has just risen,

With absolute resolution,

surpassing difficult conditions,

to obliterate darkness around us,

the Sun has just risen,

to illuminate flame of hope,

to bring light of growth,

to realize dreams that we chose,

the Sun has just risen,

Not for us or them,

nor for me or you,

to glow for one and all,

the Sun has just risen,

Collecting all the fire,

Dispersing that as light,

to energize itself and others,

the Sun has just risen,

When actions attacked our ways,

Allies destroyed our today,

to save and build a better tomorrow,

the Sun has just risen.


स्वतंत्रता दिवस पर सुनाई गई कविताएं

1. एक भारत नया बनाना है
भाषा: हिन्दी

विषय: कविता कर्तव्य, जुनून और राष्ट्रीय गर्व की भावना पैदा करती है। नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं से भारत के विकास और भविष्य की जिम्मेदारी लेने का आग्रह करता हूं। यह आत्मनिर्भरता, वैश्विक नेतृत्व और एक उज्जवल कल की दिशा में भारत की यात्रा को दर्शाती है, जो इसे एक शक्तिशाली देशभक्ति गान बनाता है। (स्वतंत्रता दिवस, 2018)

अपने मन में एक लक्ष्य लिए,

अपने मन में एक लक्ष्य लिए,

मंजिल अपनी प्रत्यक्ष लिए,

अपने मन में एक लक्ष्य लिए,
मंजिल अपनी प्रत्यक्ष लिए हम तोड़ रहे है जंजीरें

हम तोड़ रहे हैं जंजीरें,

हम बदल रहे हैं तस्वीरें,

ये नवयुग है, ये नवयुग है,

ये नवभारत है, ये नवयुग है,

ये नवभारत है।


"खुद लिखेंगे अपनी तकदीर, हम बदल रहे हैं तस्वीर,

खुद लिखेंगे अपनी तकदीर, ये नवयुग है, नवभारत है,

हम निकल पड़े हैं, हम निकल पड़े हैं प्रण करके,

हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तनमन अर्पण करके,

अपना तनमन अर्पण करके, ज़िद है, ज़िद है, ज़िद है,

एक सूर्य उगाना है, ज़िद है एक सूर्य उगाना है,

अम्बर से ऊंचा जाना है, अम्बर से ऊंचा जाना है,

एक भारत नया बनाना है, एक भारत नया बनाना है।।


2. यही समय है, सही समय है, भरत का अनमोल समय है
भाषा: हिन्दी

विषय: कविता देशभक्ति, राष्ट्रीय जागृति का प्रतीक है और युवा सशक्तिकरण, व्यक्तियों से अपनी ताकत को पहचानने और भारत की प्रगति में योगदान करने का आग्रह करती है। यह सामूहिक कार्रवाई के लिए एक भावुक और प्रेरक आह्वान है, जो इस विचार को पुष्ट करता है कि समर्पण और राष्ट्रीय गौरव से प्रेरित होने पर कुछ भी असंभव नहीं है। (75वां स्वतंत्रता दिवस, 2021)

यही समय है,

यही समय है... सही समय है, भारत का अनमोल समय है!

यही समय है, सही समय है। भारत का अनमोल समय है!

असंख्य भुजाओं की शक्ति है,

असंख्य भुजाओं की शक्ति है, हर तरफ देश की भक्ति है!

असंख्य भुजाओं की शक्ति है, हर तरफ देश की भक्ति है...


तुम उठो तिरंगा लहरा दो,

तुम उठो तिरंगा लहरा दो,

भारत के भाग्य को फहरा दो, भारत के भाग्य को फहरा दो!

यही समय है, सही समय है। भारत का अनमोल समय है!

कुछ ऐसा नहीं...

कुछ ऐसा नहीं, जो कर न सको,

कुछ ऐसा नहीं, जो पा न सको,

तुम उठ जाओ...

तुम उठ जाओ, तुम जुट जाओ,

सामर्थ्य को अपने पहचानो...



सामर्थ्य को अपने पहचानो,

कर्तव्य को अपने सब जानो...

कर्तव्य को अपने सब जानो !

यही समय है, सही समय है!भारत का अनमोल समय है!


3. चलता चलता काल चक्र, अमृत काल का भाल चक्र
भाषा: हिन्दी

विषय: कविता युवाओं को चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे राष्ट्र निर्माण में योगदान दें, और अपने देश पर गर्व करें। यह प्रेरणादायक है, लोगों को भारत के विकास और वैश्विक पहचान की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती है। (स्वतंत्रता दिवस, 2023)

चलता चलाता कालचक्र,

अमृतकाल का भालचक्र,

सबके सपने, अपने सपने,

पनपे सपने सारे, धीर चले, वीर चले, चले युवा हमारे,

नीति सही रीती नई, गति सही राह नई,

चुनो चुनौती सीना तान, जग में बढ़ाओ देश का नाम ।

बी. संघ से सम्बंधित कविताएं


चाहता हूँ...
अब क्या तुझे अर्पण करूँ?



तेरे हिस्से पाई मति

और गति भी पाई है।

तेरे पदचिन्हों से बने

पथ को ही मैं प्यार करूँ।



अब क्या तुझे अर्पण करूँ?



तपता यौवन लिए,

जीवन-श्रृंगार से अछूता

मैं –

अब क्या तुझे अर्पण करूँ?



चाँदी के टुकड़ों ने

न पाला है मुझे

और न मैंने पाले हैं चंद टुकड़े –

अब क्या तुझे अर्पण करूँ?



जीवन-पुष्प बने श्रृंगार,

और आश बने आधार,

फिर लहू बना पसीना



अब क्या तुझे अर्पण करूँ?

बस, तेरे सपनों का भारत ही

तुझे अर्पण करूँ...
ઘૂ.... ઘૂ.... કરતો સાગર

સાગરની શરણાઈ વગાડે મસ્ત યૌવન શાાં

મોજાાં લહેરથી લહેરાય શરમીલી નાર સો

કકનારો

જળમાાં ઝબોરાય ભૂરાાં ભૂરાાં ફીણના ફોદાાં માતૃગોદે કકલ્લોલ કરે સ્વાગતની સોડમ પ્રસરે નદી નીર પણ તયાાં જ સરે

હવે મન મૂકીને સમાઈ જાજો

પાછાં વળી જોશો મા ઉન્નત વશખરોનાાં સમણાાં સોહામણાાં

બસ હવે તો

ધસમસતા ચાહના પૂરમાાં વહી જ જાજો મન મૂકી સમાઈ જાજો

હવે ઘર મૂકી સાગર થાજો મન મૂકી સમાઈ જાજો
જલતે ગયે, જલાતે જલાતે

- નરેન્દ્ર મોદી

में प्रकाशित: साधना पत्रिका, 22 अप्रैल 1989



આંવધયોં કે બીચ જલ ચૂકે,

કભી

બુઝ ચૂકે કુછ દીપथे।

ઔર ભી કુછ દીપथे, વતવમર સે લોહા લલએ થે। બહાતે બહાતે પ્રકાશ,

ચુપ તો અંધકાર મેં સમા ગયા થે।

પર એક દીપ - જો આપ થે - જલતે ગયે,

જલાતે જલાતે।

આંધી આયે, વતવમર છાયે, કફર ભી જલે,

જલતે ગયે, જલાતે જલાતે।



અંધકાર સે ઝૂઝના થા, સાંકલ્પ જો ઉર મેં ભરા થા। સૂરજ આને તક જલના થા -

બસ,

જલતે ગયે, જલાતે જલાતે।

જો જલેથે, જો જલેહૈ,

જો જલેરે છે,

બન કકરણ ફહરા રહે હૈ, રોશની બરસા રહે હૈ।

તભી તો,

વસદ્ધિ કા સૂરજ વનકલ પડા હૈ, ચહુાં ઔર રોશની હી રોશની - રોશની હી રોશની મેં

સમાયા વહ દીપ, જો આપ થે।
शाखा हमारी कामधेनु है।


शाखा से हमें जब चाहे, जो चाहे मिल जाता है।


शाखा से हमें -



ममता भी मिलती है और समता भी

प्यार भी मिलता है और प्राण भी

कर्म भी मिलला है और धर्म भी

विचार भी मिलता है और आचार भी

मान भी मिलता है और सम्मान भी

कवि भी मिलते हैं और कथाकार भी

चिंतक भी मिलते हैं और लेखक भी

वीर भी मिलते हैं और रमतवीर भी

दानी भी मिलते हैं और बलिदानी भी

दर्शक भी मिलते हैं और पथदर्शक भी

मंत्री भी मिलते हैं और संत्री भी

विचारक भी मिलते हैं और प्रचारक भी

संगठक भी मिलते हैं और संघर्षक भी

संपादक भी मिलते हैं और संवादक भी



कर्मधारी भी मिलते हैं और चर्मधारी भी



ज्ञानी भी मिलते हैं और विज्ञानी भी

त्यागी भी मिलते हैं और वैरागी भी

जीवन को आकार भी मिलता है और देश को सरकार भी

शाखा के द्वारा ही हम राष्ट्र की कामनाएँ पूर्ण कर सकते हैं।


मन से समर्पित होना



आंख आं धान्या छे से ली गई



आकाश को

अपनी बाँहों में लेने को प्रयासशील

उछलता सागर

मेरी प्रेरणामूर्ति है।



यही मेरे जीवन की

शक्ति और स्मृति है। यह शहनाई भी बजाता है

जयघोष भी

किसी पर्वत की चोटी का

शिखर भी यह बताता है।



किसी भी किनारे की परवाह करे,

ऐसा है सागर नहीं।

अगर स्वीकार करने की शक्ति हो

तो...



अपनी हथेली में

देता है श्याम के पूल

और उसकी

लहरों के बगीचे की सुगंध

फूल में छलकती है।

नदी के विलय की व्यथा





सागर में समा गई नदी को

कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।



मैं पहाड़ की तरह खड़ा रह सकता हूँ

और समुद्र की तरह छलक भी सकता हूँ।



तुम मुझे

कुतर भी सकते हो

और खोद भी सकते हो।



जल की तरह

तपाई की बाल से उतार भी सकते हो।



हाथ में धरो

संवेदना की कील

और स्नेह की हथौड़ी

क्षितिजों की दीवार

आकाश की छत....



मनुष्यों की भीड़

हरी-भरी सृष्टि

मेरे घर का आकार,

मेरे मन का विस्तार

ये समस्त संसार।

सी. आध्यात्मिकता और आत्म-चिंतन



मोदी के आत्मनिरीक्षण छंद एक साधक की आत्मा को प्रकट करते हैं - जो एकांत, दिव्य सम्बंध और कर्म दर्शन से जूझतें है। उनकी आध्यात्मिक कविता अक्सर प्राचीन भारतीय ज्ञान से प्रेरित होती है, जो भगवद गीता और उपनिषदों की शिक्षाओं को प्रतिध्वनित करती है।


उनकी कविताओं के कुछ अंश हैं:

1. वैराग्य और आंतरिक साक्षी पर

· मूल: साक्षी भाव (2014) / मां को पत्र (2016).

· गुजराती: “પ્રારબ્ધને અહીં ગાાંઠે કોણ? હુાં પડકાર ઝીલનારો માણસ છ,ાં

હુાં તેજ ઉછીનુાંલઉં નહીં, હુાં જાતે બળતુાં ફાનસ છ…ાં ”

· अंग्रेज़ी: “यहां भाग्य को कौन बांध सकता है? मैं चुनौतियों को झेलने वाला व्यक्ति हूं। मैं उधार की चमक नहीं लूंगा - मैं एक दीपक हूं जो अपनी लौ पर जलता है।"

· टिप्पणी: मोदी खुद को कर्मयोगी घोषित करते हैं, चुनौतियों को स्वीकार करते हुए नियति या उधार की ताकत पर निर्भरता को खारिज करते हैं। यह एक उपनिषद भावना को दर्शाता है - स्वयं को अपने स्वयं के प्रकाश के रूप में।


2. परमात्मा के साथ संवाद पर

o स्रोत: मां को पत्र (2016)।

o अंग्रेजी (गुजराती प्रतिबिंब का अनुवाद): "एकांत में, मैं आपके सामने सब कुछ उंडेल देता हूं, मेरी मां। आप मुझे जितना मैं खुद को जानता हूं, उससे बेहतर जानती हों। मैं अपना चेहरा भूल सकता हूं, लेकिन आप मुझे कभी नहीं भूलती।

o टिप्पणी: मोदी ने अपनी कविता को दिव्य स्त्री के साथ एक व्यक्तिगत पत्राचार के रूप में लिखा है – "मां" का आह्वान करते हुए



(देवी मां)। ये पंक्तियां भक्ति (समर्पण की भक्ति) को दर्शाती हैं, जहां विश्वासपात्र और विवेक दोनों परमात्मा है।


3. गुजरतें बादलों के रूप में सफलता और असफलता पर

स्रोत: साक्षी भाव।

· गुजराती: “સફળતા – વનષ્ફળતા તો જીવનની યાત્રાના મીલના પથ્થર માત્ર છે. યાત્રા તો ચાલતી જ રહેવાની.”

· अंग्रेज़ी: "सफलता और असफलता जीवन की यात्रा में मील के पत्थर हैं। यात्रा ही जारी रहनी चाहिए।

1. टिप्पणी: यहां, मोदी परिणामों पर जोर देने के लिए यात्रा कल्पना शक्ति का उपयोग करते हैं। निरंतरता, अनुशासन और दृढ़ता पर ध्यान केंद्रित किया गया है फल के प्रति आसक्ति के बिना कर्म की गीता की शिक्षा के अनुरूप।


4. आंतरिक साथी पर

o स्रोत: मां को पत्र।

o अंग्रेजी (अनुवादित अंश): "मेरे दिमाग के अवकाश में, मैं अतीत में बहुत दूर तक यात्रा करता हूं ... जिन साथियों के साथ हमने कष्ट झेला है, उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। साथ में हमने उन संघर्षों को सहन किया - वे अंत में यात्रा बन जाते हैं।

o टिप्पणी: जबकि यह कॉमरेडशिप को याद करती है, यह आध्यात्मिक भी है यह स्वीकार करते हुए कि एकांत या परीक्षण में, परमात्मा निरंतर "साथी" है। स्वर ध्यानपूर्ण और विनम्र है, जो किसी के आध्यात्मिक विकास के हिस्से के रूप में पीड़ा को स्वीकार करती है।


5. एकांत और आंतरिक अशांति पर

· स्रोत: मां को पत्र (आंतरिक जीवन पर मोदी का नोट)।



· अंग्रेज़ी: "बाहर का सन्नाटा भीतर अशांति पैदा करता है। फिर भी, मां, आपके निहारनें में, मुझे फिर से शांति मिलती है।

· टिप्पणी: यह मौन और अशांति की तुलना करता है, जो आध्यात्मिक जीवन के विरोधाभास की ओर इशारा करता है। मोदी आंतरिक संघर्ष को व्यक्त करने के लिए कविता का उपयोग एक लेखन के रूप में करते हैं, लेकिन हमेशा इसे पवित्र सामंजस्य के साथ हल करते हैं।

डी. प्रकृति और सद्भाव

मोदी का काव्यात्मक दृष्टिकोण अक्सर प्रकृति की ओर मुड़ता है - न केवल दृश्यों के रूप में, बल्कि एक शिक्षक, मरहम लगाने वाले और लचीलेपन के रूपक के रूप में। उनके छंद जीवन के अंतर्संबंध और प्राकृतिक तत्वों में निहित ज्ञान का उत्सव मनाते हैं।


उनकी कविताओं के कुछ अंश हैं:

1. ऋतुओं में नवीनीकरण पर

· स्रोत: आंख आ धन्य छे (2007)।

· गुजराती: “અંતમાાં આરાંભ અને આરાંભમાાં અંત, પાનખરના કહયે ટહુકે વસાંત…”

· अंग्रेज़ी: "अंत में, एक शुरुआत - और हर शुरुआत में, एक अंत। शरद ऋतु के मध्य में, एक वसंत हलचल करता है और गाता है।

· टिप्पणी: मोदी ऋतुओं के शाश्वत चक्र का चित्रण करते हैं। शरद ऋतु (पंखार) गिरावट का प्रतीक है, फिर भी इसके भीतर वसंत खिलता है, जो लचीलेपन और नवीनीकरण का सुझाव देता है। यह प्राकृतिक अवलोकन और आशा का रूपक दोनों है।


1. जीवन की सुंदरता के लिए कृतज्ञता पर

· स्रोत: कविता आंख आ धन्य छे की शुरुआत धन्य से



· गुजराती: “લીલાછમ ઘાસ પર તડકો ઢોળાય અહીં – તડકાને કેમે કરીને ઝાલ્યો ઝલાય નહીં. આભમાાં મેઘધનુષ મ્હોરતુ,ાં ફોરતુ,ાં હવામાાં રાંગનાાં વતુળુો દોરતુ…ાં જીંદગી ધન્દ્ય છે, ધન્દ્ય છે.”

· अंग्रेज़ी: "सूरज की रोशनी यहां हरी-भरी घास पर फैलती है - फिर भी यह कभी अभिभूत नहीं होती है। आकाश में, एक इंद्रधनुष खिलता है और प्रस्फुटित होता है, हवा में रंग के घेरे खींचता है ... जीवन धन्य है, वास्तव में धन्य है।

· टिप्पणी: कृतज्ञता का एक भजन। प्राकृतिक दुनिया को बहुतायत के रूप में दर्शाया गया है, और "जीवन धन्य है" परहेज उनके विश्वास को दर्शाता है कि प्रकृति को देखना और महसूस करना ही भाग्य है।


4. शिक्षक के रूप में प्रकृति पर

· स्रोत: लेटर्स टू मदर (2016, मूल रूप से गुजराती से अनुदित)।

· अंग्रेज़ी: "जंगल धैर्य सिखाता है, नदियां दृढ़ता की फुसफुसाती हैं, पहाड़ स्थिरता की घोषणा करते हैं, और आकाश हमें विशालता की याद दिलाता है।

· टिप्पणी: यहां मोदी सीधे प्राकृतिक तत्वों से सबक लेते हैं। पर्यावरण की प्रत्येक विशेषता नैतिक है, जो प्रकृति को एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखने की उनकी प्रवृत्ति को दर्शाती है।


1. मानव-प्रकृति सम्बंध पर

· स्रोत: मां को पत्र।

· अंग्रेज़ी: "क्या यह ब्रह्मांड, प्रौद्योगिकी की खोज में, प्रकृति द्वारा उपहार में दिए गए खजाने को खो देगा? क्या आंखों की अभिव्यक्ति से अधिक कीमती कुछ हो सकता है?

· टिप्पणी: यह प्राकृतिक दुनिया से आधुनिकता के वियोग के बारे में उनकी चिंता को दर्शाता है। अलंकारिक प्रश्न है



काव्यात्मक और भविष्यसूचक दोनों, जो हमें बनाए रखता है उसकी उपेक्षा करने के खिलाफ चेतावनी देते हैं।


2. सरल प्राकृतिक क्षणों में खुशी पर

1. स्रोत: आंख आ धन्य छे

· गुजराती: “કોઈલનો લય ગુાંજે, કેસૂડાાંના કોના પર ઊછળે પ્રણય… ભલે લાગે રાંક, પરાંતુ ાં ભીતરથી શ્રીમાંત – પાનખરના કહયે ટહુકે વસાંત.”

· अंग्रेज़ी: "कोयल गाती है; प्यार में लौ-पलाश खिलती है... बाहरी रूप से गरीब, फिर भी भीतर से समृद्ध - क्योंकि शरद ऋतु के दिल में, वसंत खुशी में चहकता है।

· टिप्पणी: मोदी छिपे हुए आनंद और आंतरिक समृद्धि के प्रतीक के रूप में पक्षियों के गीत और फूलों का उपयोग करते हैं। कठिनाई (शरद ऋतु) में भी, प्रकृति सुंदरता (वसंत) धारण करती है।




ई. नेतृत्व और विजन



उनकी कविताएं अक्सर उनके नेतृत्व के लोकाचार को प्रतिबिंबित करती हैं - लचीलापन, दूरदर्शिता और विपरीत परिस्थितियों को ताकत में बदलने की क्षमता। मोदी की काव्यात्मक आवाज उनकी राजनीतिक दृष्टि को मजबूत करती है, जो उनके शासन को एक दार्शनिक आधार प्रदान करती है।


उनकी कविताओं के कुछ अंश हैं:

1. आंतरिक शक्ति पर

स्रोत: साक्षी भाव (2014); लेटर्स टू मदर (2016) में अनुवादित।





· गुजराती: “હુાં તેજ ઉછીનુાંલઉં નહીં, હુાં જાતે બળતુાંફાનસ છ…ાં મારો વારસ છ.ાં ”


હુાં પોતે જ



· अंग्रेज़ी: "मैं उधार की चमक नहीं लूंगा - मैं एक दीपक हूं जो अपनी लौ पर जलता है। मैं अपना खुद का वंशज हूं, मैं अपना खुद का उत्तराधिकारी हूं।

टिप्पणी: आत्मनिर्भरता की घोषणा, दृढ़ संकल्प और स्वतंत्रता के उनके राजनीतिक व्यक्तित्व के साथ संरेखित करती है।


1. परीक्षणों के माध्यम से निर्माण पर

1. स्रोत: मां को पत्र।

· अंग्रेज़ी: "संघर्ष के निशान बोझ नहीं बल्कि भविष्य की ताकत की नींव हैं। हर घाव ने मेरे भीतर एक नया रास्ता बना दिया है।

· टिप्पणी: यहां संघर्ष विकास का एक रूपक बन जाता है। मोदी नेतृत्व की दृष्टि के लिए कठिनाई को आवश्यक मानते हैं – निशान को सीढ़ी के रूप में देखते हैं, असफलताओं के रूप में नहीं।


2. वर्तमान से परे दृष्टि पर

1. स्रोत: साक्षी भाव।

· गुजराती: “આજના કષ્ટો કાળની કાાંતી છે, આજની અંધારી રાત આવતી કાલનુાંસૂયોદય છે.”

· अंग्रेज़ी: "आज की कठिनाइयां कल की चमक हैं; आज रात का अंधेरा आने वाले दिन का सूर्योदय है।

· टिप्पणी: एक स्पष्ट रूप से दूरंदेशी दूरदर्शी, दूरदर्शी स्वर - एक उज्जवल सामूहिक भविष्य के लिए निवेश के रूप में कठिनाई। यह दीर्घकालिक परिवर्तन के लिए दृढ़ता पर उनके राजनीतिक जोर को दर्शाता है।


नरेंद्र मोदी का कवित केवल एक कलात्मक प्रयोग नहीं है, यह एक ऐसे नेता की आत्मा का वात्यान है जो शासन को शालीनता के साथ, रणनीति को संवेदनशीलता के साथ और शक्ति को कविता के साथ संतुलित करता है। साउंडबाइट्स और भाषणों के युग में, उनकी कविताएं हमें याद दिलाती हैं कि अनुभवी राजनेता के पीछे एक कवि छिपकर खड़ा है जो चुपचाप एक राष्ट्र की भावना और एक व्यक्ति की यात्रा का वर्णन करता है।

उनका साहित्यिक योगदान न केवल उनकी कलात्मक योग्यता के लिए बल्कि प्रेरित करने, विचार को गति देने और भारतीय आबादी के भावनात्मक मूल से जुड़ने की उनकी क्षमता के लिए भी मान्य है। जैसे-जैसे भारत विकसित हो रहा है, मोदी की कविता दिल और दिमाग को आकार देने के लिए शब्दों की स्थायी शक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ी है। हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

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