गुरु -शिष्य
डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव
वेद -ग्रंथों में वर्णित है
युगों-युगों से यह गाथा,
अविचल सुंदर बन्धन है
गुरु -शिष्य का यह नाता।
मूर्तिकार मिट्टी को गूंथ कर
अद्भुत मूर्ति गढ़ कर लेता,
सुरतालों का आलिंगन कर
ससुरमयी संगीत बन जाता।
स्वादहीन जल में चीनी
घुलकर शर्वत है बनाता,
पारस पत्थर को छूने से
लोहा सोना है बन जाता।
जैसे बिन पानी के चंदन
तिलक नहीं है बन पाता,
बिना गुरु के अज्ञानी को
ज्ञान नहीं है हो पाता ।
इसी तरह अटूट बंधन है
गुरु और शिष्य का नाता,
इसीलिए सारे जग मे है
गुरु गोविंद से बड़ा कहलाता।
मुजफ्फरपुर, बिहार
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