14 सितंबर हिन्दी दिवस या हिंदी श्राद्ध दिवस

डा आशीष पाण्डेय
हिन्दी दिवस पर बरबस ही भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की यह पंक्तियां-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
वर्तमान हिन्दी की दशा और दिशा देख कर हिन्दी उपासकों के मन को गहरे अवसाद से भर देती है और कुछ सोचने पर विवश कर देती है। जैसा कि विदित है 14 सितम्बर 1949 को भारत के संविधान-निर्माताओं ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया। उसी ऐतिहासिक क्षण की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी न केवल करोड़ों भारतीयों की मातृभाषा है, बल्कि यह देश की साझा संस्कृति, पहचान और विविधता का प्रतीक भी है। तथापि, आज के बदलते वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी की स्थिति और उसके भविष्य पर विचार करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो जहाँ हिन्दी के समक्ष अनेक अवसर उपस्थित हैं, वहीं चुनौतियाँ भी कम नहीं है।
हिन्दी की वर्तमान स्थिति
आज हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में लगभग 46% लोग इसे अपनी मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं और शेष देशवासी किसी न किसी रूप में इससे जुड़े हुए हैं। साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा, सिनेमा, रेडियो और टेलीविजन के क्षेत्र में हिन्दी का व्यापक प्रयोग हो रहा है।
डिजिटल युग में भी हिन्दी की स्थिति मजबूत हुई है। सोशल मीडिया, ब्लॉग, यूट्यूब और विभिन्न समाचार पोर्टलों पर हिन्दी सामग्री बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी हिन्दी में अपनी सेवाएँ उपलब्ध करा रही हैं।
हिन्दी के सामने चुनौतियाँ
1. अंग्रेज़ी का वर्चस्व – भारत में शिक्षा, प्रशासन, न्यायपालिका और व्यापारिक जगत में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व अभी भी गहरा है। उच्च शिक्षा और शोध कार्य अधिकतर अंग्रेज़ी में ही किए जाते हैं, जिससे हिन्दी पिछड़ती प्रतीत होती है।
2. भाषाई असमानता – भारत बहुभाषी राष्ट्र है। दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी के प्रति संकोच और विरोध की मानसिकता देखने को मिलती है। यह राजनीति और क्षेत्रीय अस्मिता से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है।
3. शुद्धता बनाम व्यवहारिकता – हिन्दी का मानक रूप कई बार इतना कठिन और संस्कृतनिष्ठ बना दिया जाता है कि आम जन उससे दूरी महसूस करता है। वहीं, दूसरी ओर अत्यधिक अंग्रेज़ी-मिश्रित हिन्दी (हिंग्लिश) उसकी शुद्धता और आत्मा को चुनौती देती है।
4. तकनीकी पिछड़ापन – भले ही डिजिटल क्षेत्र में हिन्दी की पहुँच बढ़ी हो, परंतु उच्च-स्तरीय तकनीकी शोध, वैज्ञानिक लेखन और नयी खोजों की भाषा हिन्दी अभी तक नहीं बन सकी है।
5. युवाओं का दृष्टिकोण – आज का युवा वर्ग रोजगार और ग्लोबल अवसरों के कारण अंग्रेज़ी को प्राथमिकता देता है। हिन्दी साहित्य पढ़ने की प्रवृत्ति घट रही है, और भाषा केवल बोलचाल तक सीमित हो रही है।
अवसर और संभावनाएँ
1. जनभाषा की शक्ति – हिन्दी जनता की भाषा है। गाँव-शहर, उत्तर-दक्षिण, अमीर-गरीब सभी वर्गों में इसकी पहुँच है। यह लोकतंत्र की आत्मा को अभिव्यक्त करने की सर्वाधिक सक्षम भाषा है।
2. डिजिटल क्रांति – स्मार्टफोन और इंटरनेट ने हिन्दी को अभूतपूर्व विस्तार दिया है। लाखों ब्लॉग, यूट्यूब चैनल और पॉडकास्ट हिन्दी में उपलब्ध हैं। भविष्य में यह डिजिटल सामग्री हिन्दी को और भी सशक्त बनाएगी।
3. सिनेमा और संस्कृति – बॉलीवुड और क्षेत्रीय हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी को विश्वव्यापी पहचान दिलाई है। भारतवंशी समुदाय भी विदेशों में हिन्दी गीत, साहित्य और नाटकों के माध्यम से इसकी पहचान को आगे बढ़ा रहा है।
4. अनुवाद और वैश्विक मंच – संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दी की उपस्थिति बढ़ रही है। यदि हिन्दी को विश्व-भाषा का दर्जा मिल सके तो इसकी प्रतिष्ठा और प्रभाव और भी बढ़ेगा।
हिन्दी का भविष्य केवल भावनात्मक आग्रह पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक नीतियों पर निर्भर है। यदि हम हिन्दी को केवल सांस्कृतिक पहचान तक सीमित कर देंगे और शिक्षा, शोध, विज्ञान और तकनीक से नहीं जोड़ेंगे, तो इसका भविष्य कमजोर रहेगा।
हिन्दी दिवस मनाना प्रतीकात्मक है, परंतु आवश्यकता इस बात की है कि पूरे वर्ष हिन्दी को व्यवहारिक जीवन में प्राथमिकता दी जाए।
हिन्दी को अन्य भारतीय भाषाओं के साथ सहयोगात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, न कि प्रतिस्पर्धा में। यदि हम हिन्दी को थोपने का प्रयास करेंगे, तो विरोध बढ़ेगा।
हिन्दी को आसान, सुगम और व्यावहारिक रूप में अपनाने की ज़रूरत है। बहुत संस्कृतनिष्ठ शब्दावली आम जन को दूरी पर ले जाती है।
हिन्दी साहित्य और आधुनिक रचनाएँ विद्यालय और विश्वविद्यालयों में आकर्षक ढंग से पढ़ाई जानी चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी उससे जुड़ सके।
सबसे महत्वपूर्ण, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाना होगा। जब हिन्दी में रोजगार, स्टार्टअप और शोध की संभावनाएँ बनेंगी, तभी उसका भविष्य सुरक्षित होगा।
सुझाव
1. प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक हिन्दी माध्यम को प्रोत्साहित करना।
2. हिन्दी में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली का विकास तथा अनुवाद को बढ़ावा देना।
3. हिन्दी के साहित्य और संस्कृति को डिजिटल माध्यम से युवाओं तक पहुँचाना।
4. सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में हिन्दी प्रयोग को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना।
5. हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच सहयोगी संबंध विकसित करना।
हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल तभी होगा जब हम इसे केवल "भावना की भाषा" न मानकर "ज्ञान, विज्ञान और रोजगार की भाषा" बनाएँगे। आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो हिन्दी के सामने जितनी चुनौतियाँ हैं, उतनी ही संभावनाएँ भी। आज आवश्यकता है आत्मविश्वास, नीति-संगत प्रयास और जन-सहभागिता की। हिन्दी दिवस का सही अर्थ तभी है जब हर भारतीय अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिन्दी को भी समान आत्मीयता से अपनाए।
भविष्य हमें हिन्दी दिवस का लोकाचार या हिन्दी श्राद्ध दिवस मानाने की औपचारिकता के बजाय आत्ममुग्धता से परे यह विचार करें कि भविष्य में हिन्दी का स्थान कितना ऊँचा होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इसे केवल "दिवस" तक सीमित रखते हैं या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसे सहज रूप से आत्मसात करते हैं। तभी हिन्दी हमारे हृदय से देश के हृदय मे स्पंदित हो सकेगी...।
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