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कृष्ण जन्माष्टमी कथा-काव्य

🌺 कृष्ण जन्माष्टमी कथा-काव्य 🌺

✍ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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द्वापर का वह कठिन समय था,
अधर्म का था बोलबाला,
प्रजा दबी थी अत्याचारों से,
कंस बना था राज-शिकाला।


देवकी-वासुदेव बंधे थे,
कारागार की कठोर दीवार,
कंस के भय से काँप रहा था,
हर प्राणी, हर घर, हर द्वार॥


देवकी के छह-छह शिशुओं का,
निर्दयी ने संहार किया,
ममता की कोख से छीन उन्हें,
निर्ममता का विस्तार किया।


किन्तु वे शिशु साधारण न थे,
थे ब्रह्मलोक के तेजमयी,
स्मर, उद्रीथ, परिश्वंग, पतंग,
क्षुद्रमृत, घ्रिणी दैवजयी॥


ब्रह्मपुत्र थे कृपा-संपन्न,
किंतु हुआ जब गर्व विशाल,
अनादर कर ब्रह्मा का बैठे,
मिल गया श्राप दैत्य-जाल॥


हिरण्यकश्यप के घर जन्मे,
किंतु तपस्या में मन लगाया,
ब्रह्मा ने वरदान दिया था,
मृत्यु देवों से न आए॥


पर दैत्य-पुत्रों पर लगा शाप,
“दैत्य ही होंगे संहारक”,
इसलिए कंस के हाथों से,
हुए नन्हें जीवन आहत॥


सुतल लोक में पाए ठाव,
प्रतीक्षा की प्रभु-कृपा की,
मुक्ति का अवसर पाएँगे,
जब कृपा हो माधव की॥


कंस-वध कर कृष्ण गए जब,
कारा में माता से मिलने,
देवकी ने माँगी इच्छा,
अपने बच्चों को एक बार मिलने।”


करुणा-सागर श्यामसुंदर,
ले आए सुतल लोक से,
माँ को दर्शन कराए पलभर,
फिर चिर-विराम देव लोक से॥


जीवन में चाहे संकट भारी,
प्रभु की लीला अनंत निराली,
जो भक्त हृदय से भजन करे,
उसकी नैया पार उतारी॥
16.08.2025


श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ! प्रभु श्री कृष्ण सभी का कल्याण करें।
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