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दिल फिसल गया

दिल फिसल गया

जिसे हम दिलसे चाहते है। 
क्या वो हमें भी चाहते है। 
क्या अपने अरमानों का। 
गला वो घोट रहे है।। 

बहुत दिनों से वो 
हंसकर देख रहे है। 
और अपनी हंसी में 
प्यार जाता वो रहे है। 
कभी आँखो से बुलाते है
तो कभी इशारो से भी। 
और अपने होने का वो 
हमें एहसास दिला रहे है।। 

अभी तक तो हम दोनों
अंजान है एक-दूसरे के लिए। 
इसलिए देखा देखी तक 
हम दोनों सीमित है बस। 
लगा नही है दिल को
अब तक कुछ ऐसा। 
जिससे दिल मचल उठे
उन्हें देखकर बस मेरा।। 

उम्मीदें दिलकी लेकर वो 
मोहब्बत किये जा रहे है। 
दूर से प्यार वो अपना
लूटाए हम पर जा रहे है। 
सफलता कितनी मिलेगी
ये तो उनको भी नही पता। 
मगर अब दिल मेरा भी
फिसलने उन पर लगा है।। 

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई

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