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"रिश्ते की डोर"

"रिश्ते की डोर"

रिश्तों से ही रचा गया है यह जीवन,
हर बंधन, हर स्पर्श,
अपने भीतर समेटे है कोई कहानी —
पर भाई-बहन का रिश्ता,
जैसे दो तारे एक ही आकाश के,
हमेशा साथ रहते हुए भी,
थोड़े दूर... थोड़ा करीब।

बचपन की वो नोकझोंक,
रोटियों पर नाम लिखकर खाना,
पेंसिल छुपाना,
और फिर माँ की डांट में
एक-दूजे की तरफ़ से सफ़ाई देना —
ये झगड़े नहीं थे,
ये थे रिश्ते को पक्का करने के संस्कार।


बहन की राखी बाँधते समय
भाई की कलाई थरथराती थी,
और बहन —
जो मिठाई चुपचाप खा जाती थी,
हर बार बाँधती थी
एक अदृश्य रक्षा-कवच
भाई की हर यात्रा के लिए।


वक़्त बीता,
स्कूल के यूनिफ़ॉर्म बदलकर
बदल गए रास्ते,
और एक दिन —
जब बहन को ससुराल विदा किया गया,
भाई की आंखों में
बरस पड़े वो सारे शब्द
जो कभी कहे नहीं गए।


अब वो साथ नहीं रहते,
पर हर त्योहार पर
राखी की डाक समय से पहुँचती है,
और भाई के दिल की धड़कन
बहन की चुप्पियों को सुन लेती है।


कभी-कभी,
रिश्ते सिर्फ़ साथ रहने से नहीं,
बल्कि
एक-दूसरे के लिए हमेशा होने से बनते हैं।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित


✍️ "कमल की कलम से"✍️

(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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