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कर्तव्य

कर्तव्य

आनंद हठिला पादरली (मुंबई)
पकड़ो..पकड़ो..ना जाने मंदिर से क्या चुराकर भागा है ।
दौड़ती हुई भीड़ के साथ मैं भी उस लड़के के पीछे भाग लिया ।
मेन रोड़ पर आती उस तेज स्पीड़ कार को वह देख ना सका और धड़ाक से वह उस कार से जा टकराया ।
टकराते ही करीब सात आठ फीट की ऊंचाई तक उछलने के बाद वह कार के पीछे जा गिरा ।

अचानक भीड़ रूक गई ।
भीड़ में से एक ने आगे बढ़कर उसकी नब्ज देखी जो दम तोड़ चुकी थी ।


उस लड़के की बन्द मुट्ठी को जब उसने खोला तो मैं देखकर सन्न रह गया अरे यह तो वही लड्डू है जो मैंने अभी अभी मंदिर में भगवान को चढाए थे ।
और ये क्या ये लड़का भी तो वही है कुछ देर पहले जब मैं मंदिर में जा रहा था तो इसने मुझसे कहा था दो दिन से कुछ नही खाया है ।


मेरे मां बापू मर चुके हैं बाबूजी,
मेरी एक छोटी सी बहन और एक बूढ़ी अम्मा है ।
बाबूजी कुछ खाने को दे दो बाबूजी, वो दोनो भी दो दिन से भूखे है बाबूजी ।


मैंने उसे दुत्कार कर भगा दिया था और मैं शायद उसकी आखिरी उम्मीद था जिसके टूटने पर उसने मंदिर से प्रसाद उठाया और लोगों ने उसे चोर समझा ।
तभी उसकी लगभग दो वर्ष की बहन और साठ साल के लगभग की दादी वहां आ पहुंची दादी ने पोती को गोदी से नीचे उतारा और उस लड़के से लिपटकर रोने लगी ।
और वो निरीह, मासूम बच्ची (जो यह ना जानती थी उसका भाई उब इस दुनियां में नही रहा) उस लड़के के हाथ से उस लड्डू को उठाकर खाने लगी ।
मन घृणा से भर उठा क्यूं मैने उस लड़के की बात को अनसुना कर दिया ।
क्यूं मैने उसकी बात पर यकीन नही किया ।
क्या इस भूखे को खिलाना मेरा कर्तव्य नही था ??


मै इस घटना के लिए किस हद तक जिम्मेदार हूं मैं यह तय नही कर पा रहा थी और वह लड़का जैसे मुझसे कह रहा हो ।


"देख लिया ना बाबूजी मैने अपने 'कर्तव्य'का पालन कर दिया ना ।।


गरीब नारायण की सेवा ही नारायण सेवा है ।
।। अन्न दान महा दान ।।

शुभरात्रि
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