Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

कैकेयी

कैकेयी

रामायण के नारी पात्र कैकेयी का स्मरण आम आदमी घृणा और तिरस्कार के साथ करता है। आज भी कोई आदमी अपनी पुत्री का नाम कैकेयी नहीं रखता है। तो आइये कैकेयी के बारे में कुछ रोचक तथ्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं।
कैकेयी कैकय देश के राजा अश्वपति की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम शुभ लक्षणा था। राजा अश्वपति के राजपुरोहित श्रवण कुमार के पिता रत्न्ऋषि थे। उन्होंने कैकेयी को सभी शास्त्रों और वेद पुराण की शिक्षा दी थी।
संयोगवश किसी चर्चा के दरमियान राजा दशरथ के संबंध में रत्न्ऋषि ने कैकेयी को यह बतलाया कि ज्योतिष गणना के अनुसार अगर राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात् यदि चौदह वर्ष के दौरान उनका कोई संतान राजगद्दी पर बैठ गया तो रघुवंश का नाश हो जायेगा। इस बात को कैकेयी ने पूरी तरह से अपने दिल में बैठा लिया। और दशरथ जी से ब्याह के बाद भी इसे हमेशा याद रखा।
समय आने पर कैकेयी का ब्याह अयोध्या के राजा दशरथ जी के साथ हुआ। शादी के समय उनकी एक प्रिय दासी मंथरा भी कैकेयी के साथ अयोध्या आयी। कैकेयी राजा दशरथ की तीन रानियों, कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी में सबसे छोटी और सबसे प्रिय रानी थी। वह जितना सुंदर थी उतना ही ग्यानवान और गुणवान थी।
माता कौशल्या के पुत्र राम थे। कैकेयी के पुत्र भरत थे। वहीं माता सुमित्रा के दो पुत्र थे, लक्षमण और शत्रुघ्न। कैकेयी अपने पुत्र भरत से भी ज्यादा अपने शौत पुत्र राम को प्रेम करती थी। समयानुसार जब राजा दशरथ के बड़े पुत्र राम के राजतिलक का समय आया तो बुद्धिमती कैकेयी को अपने राजपुरोहित रत्न्ऋषि के कथन का स्मरण हो आया। उसने यह निश्चय किया कि वह अपने प्रिय पुत्र राम को रघुवंश के विनाश का कारण नहीं बनने देगी।
एक समय कैकेयी राजा दशरथ के साथ उनके रथ पर बैठकर युद्ध भूमि पर गयी हुई थीं, जब देव दानव युद्ध चल रहा था और राजा दशरथ देवताओं के सहायतार्थ युद्ध कर रहे थे। युद्ध भूमि में राजा दशरथ का रथ टूट गया था, उस समय कैकेयी ने उनकी मदद की थी। इससे प्रसन्न होकर राजा दशरथ ने उन्हें दो वरदान देने को कहा था, जिसे कैकेयी ने समय आने पर मांगने के लिए रख छोड़ा था।
इधर एक समय राजा अनरण्य इक्ष्वाकु वंश के राजा थे और राम के पूर्वज थे। वह युद्ध करते हुए रावण से पराजित हो गये थे और मृत्यु को प्राप्त हुए थे। लेकिन अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने रावण को शाप दिया था कि उनके ही वंश में जन्मा व्यक्ति रावण का वध करेगा।
कालचक्र के अनुसार जब उसी इक्ष्वाकु वंश में विष्णु का अवतार भगवान् राम के रूप में दशरथ के बड़े पुत्र के रूप में हुआ तब अतीत की सारी बातें एक साथ घटीं। उन घटनाओं में कैकेयी माध्यम बनीं।
पृथ्वी पर राक्षसों का उत्पात बढ़ने के साथ समय आने पर राम के वन गमन आदि की योजना देवलोक में बन रही थी और घटित अयोध्या में हो रही थी। सरस्वती ने कैकेयी की दासी मंथरा के मति में देवलोक की योजना डाल दी। मंथरा ने कैकेयी को वही सुनाया और समझाया तथा अपने पति दशरथ जी को मानने के लिए बाध्य किया, जो सरस्वती करवाना चाहती थी। यानि दशरथ जी के पास थाती रखा कैकेयी का दो वरदान। कैकेयी ने दो वरदान मांगे , अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी और शौत पुत्र राम के लिए चौदह साल का वनवास।
देवलोक में बनायी गयी योजना और अयोध्या में घटित होने वाले कर्मों का केंद्र एक मात्र पृथ्वी से राक्षसों का विनाश करना था।
कैकेयी देव योजना के मुताबिक और स्वार्थ वश पुत्र प्रेम में ऐसे दो वरदान मांग बैठी, जिसने कैकेयी के जीवन को ही कलंकित कर दिया।
राम के वन गमन के साथ दशरथ जी का मौत हो गया। भरत जी जब ननिहाल से लौटे तब सब कुछ जानकर वो अपनी माता कैकेयी की घोर निंदा करते हैं। वो अपनी माता को कुवचन तक बोल देते हैं। वो कहते हैं कि उनकी माता ने कुल का नाश कर दिया। यह सब कुछ अपने पुत्र द्वारा कहा हुआ सुनकर भी कैकेयी रघुवंश की सुरक्षा के लिए सब अपमान सहन कर जाती हैं।
राम को चौदह साल के वनवास के पीछे जो तथ्य छिपा था उसमें कैकेयी ने राम का ही कल्याण चाहा था। कोई व्यक्ति युवावस्था में अगर पांच ज्ञानेन्द्रियों (कान, नाक, आंख, जीभ, त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियों (वाक, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ) तथा मन, बुद्धि, चित और अहंकार, इन सबको मिला कर चौदह को एकांत आत्मा के वश में रखेगा, तभी वह अपने अंदर के घमंड और रावण रूपी राक्षस को मार पायेगा। इस तरह राम को चौदह साल वन में तपस्या करने का अवसर मिलेगा और वो अधिक शक्तिशाली बनेंगे तथा अन्य राक्षसों सहित रावण का वध कर सकेंगे। एक और कारण यह भी था कि उस समय रावण की आयु अब केवल चौदह वर्ष ही शेष रह गया था।
भगवान् राम चौदह वर्ष के लिए वनवास चले गए थे, जहाँ उन्होंने इस अवधि में राक्षसों तथा रावण का नाश किया। भरत जी भी अयोध्या की राजगद्दी पर स्वयं नहीं बैठे, बल्कि उन्होंने वन जाकर राम के पादूका को लाया और उसी पादूका को राजसिंहासन पर स्थापित कर राज्य का शासन संचालित किया। यानि राजा दशरथ के मृत्यु उपरांत चौदह वर्ष तक उनका कोई भी पुत्र अयोध्या की राजगद्दी पर नहीं बैठा, और रघुवंश का नाश होने से बच गया।
इस तरह अपने पिता के राजपुरोहित रत्न्ऋषि के ज्योतिष गणना के अनुसार कहे गए विनाश से राम के जीवन की रक्षा तथा रघुवंश का विनाश होने से कैकेयी ने बचा लिया। हांलाकि इस घटना क्रम में कैकेयी को अपने पति राजा दशरथ को खोना पड़ा तथा अपने पुत्र भरत से अपमानित होना पड़ा।
इस प्रकार देखा जाए तो मानस का गहन अध्ययन करने पर जो तथ्य सामने आता है उसके अनुसार कैकेयी नींदनीय हैं अथवा वंदनीय हैं, इस पर अपना मत प्रकट करना आसान काम नहीं है।

जय प्रकाश कुवंर


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ