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अपनी ये जिंदगी

अपनी ये जिंदगी

✍️ डॉ अंकेश कुमार 
कतरा कतरा जिंदगी
गुज़र रही आजकल
सबके हिस्से अपनी जिंदगी
उतर रही आजकल।
मेरी छोड़ो ये बताओ ,
कैसी चल रही,
तुम्हारी आज कल?
अपनी जिंदगी सबके हिस्से
उतर रही आजकल।
सबके सपने पूरे करना,
अपेक्षाओं पर खड़ा उतरना।
मालूम होता सामंती युग में
जिंदगी ठहर गई आजकल।
सबके हिस्से अपनी जिंदगी
उतर रही आजकल।
जिसे न कोई अपनी चिंता
न ही कोई दशा दिशा
अकड़ में है धूनी रमाए
औरों पे बस रौब जमाए
पूजे उसे सब और शीश नमाए
कहो? कैसी बीत रही आजकल
सबके हिस्से अपनी जिंदगी
उतर रही आजकल।
@अंकेश
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