भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी: इतिहास और धार्मिक महत्व
सत्येन्द्र कुमार पाठक
जन्माष्टमी, जिसे गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण सनातन त्योहार है जो भगवान विष्णु के 24 वे अवतार में 22 वें अवतार केवम दसवें अवतार में आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाता है। यह पर्व भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीनों में पड़ता है । धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में अराजकता और अत्याचार के दौर में हुआ था। उनके मामा, राजा कंस, ने अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर शासन पर कब्जा कर लिया था। एक आकाशवाणी ने कंस को चेतावनी दी थी कि उसकी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा। इस डर से कंस ने देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया। वासुदेव और देवकी की सात संतानों को कंस ने जन्म लेते ही मार डाला। जब आठवीं संतान, श्री कृष्ण, का जन्म हुआ, तो उसी समय एक चमत्कार हुआ। कारागार के द्वार खुल गए और सभी पहरेदार सो गए। वासुदेव बाल कृष्ण को एक टोकरी में रखकर यमुना नदी के पार गोकुल ले गए, जहाँ उन्होंने उन्हें नंद बाबा और यशोदा मैया को सौंप दिया। गोकुल में नंद बाबा और यशोदा मैया के घर कृष्ण का पालन-पोषण हुआ।
जन्माष्टमी का उत्सव भारत और दुनिया भर में फैले हिंदू समुदायों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन, भक्त निर्जला (बिना पानी के) या फलाहार (फल और दूध) उपवास रखते हैं। वे दिन भर कृष्ण के भजन गाते हैं और धार्मिक कहानियाँ सुनते हैं। मध्यरात्रि में, जब कृष्ण का जन्म हुआ था, मंदिरों और घरों में विशेष पूजा की जाती है। कृष्ण की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराया जाता है और उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। इसके बाद, पालने में बाल कृष्ण की मूर्ति रखकर झूला झुलाया जाता है। इस अनुष्ठान के बाद भक्त प्रसाद ग्रहण कर अपना उपवास तोड़ते है। देश के कई हिस्सों, विशेषकर मथुरा और वृंदावन में, रासलीला का आयोजन किया जाता है। यह एक प्रकार का नृत्य-नाटक है जिसमें कलाकार कृष्ण के बचपन की शरारतों और राधा के साथ उनके प्रेम को दर्शाते हैं। यह रासलीला कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है और लोगों को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ती है।महाराष्ट्र में, जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है। बाल कृष्ण को मक्खन और दही बहुत पसंद था। वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर ऊँचे स्थानों पर लटकी हुई हांडियों से माखन चुराते थे। इसी कथा को याद करते हुए, युवा लड़के (जिन्हें 'गोविंदा' कहा जाता है) एक मानव पिरामिड बनाकर दही से भरी हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं। यह उत्सव एकजुटता और टीम वर्क का प्रतीक है। जन्माष्टमी को भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
उत्तर भारत (मथुरा, वृंदावन): यहाँ मंदिर बहुत खूबसूरती से सजाए जाते हैं, और रात भर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु): यहाँ लोग फर्श पर चावल के आटे से कोलम (रंगोली) बनाते हैं, जिसमें कृष्ण के पैरों के निशान दर्शाए जाते हैं, मानो वे घर में प्रवेश कर रहे हों।पूर्वी भारत (ओडिशा, पश्चिम बंगाल): यहाँ जन्माष्टमी को श्री कृष्ण जयंती के रूप में जाना जाता है। अगले दिन 'नंदोत्सव' मनाया जाता है, जो नंद बाबा और यशोदा मैया की खुशी का प्रतीक हैभारत के बाहर, नेपाल, बांग्लादेश, फिजी और कैरिबियाई देशों में भी जन्माष्टमी मनाई जाती है। फिजी में यह पर्व आठ दिनों तक चलता है, जिसमें भक्त भगवान कृष्ण के सम्मान में भजन और कीर्तन करते हैं।
जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनका जीवन और शिक्षाएं मानव जाति के लिए ज्ञान, भक्ति और कर्म का एक संपूर्ण संगम है। यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक पहलुओं का भी प्रतीक है।श्री कृष्ण का जन्म उस समय हुआ जब मथुरा में राजा कंस का आतंक चरम पर था। कंस ने अपने पिता को कारागार में डालकर स्वयं सिंहासन हथिया लिया था। श्री कृष्ण का जन्म ही दुराचार और अधर्म के अंत का प्रतीक था। उनका जीवन हमें सिखाता है कि न्याय और धर्म की स्थापना के लिए किसी भी परिस्थिति में संघर्ष करना चाहिए।सामाजिक दृष्टि से, कृष्ण का जीवन एक आदर्श प्रस्तुत करता है। उन्होंने अपनी बाल लीलाओं से गोकुल के सभी लोगों को आनंदित किया। उन्होंने समाज के हर वर्ग के लोगों, चाहे वे चरवाहे हों या ग्वालिनें, के साथ समानता का व्यवहार किया। दही हांडी का उत्सव, जो आज भी मनाया जाता है, समुदाय और एकता का प्रतीक है, जहाँ लोग मिलकर एक लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण के जीवन में भक्ति, ज्ञान और कर्म का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। भक्ति: कृष्ण भक्ति आंदोलन की नींव डाली गई, जिसमें भक्त भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मानते हैं।ज्ञान: उन्होंने भगवद गीता के माध्यम से अर्जुन को और पूरी दुनिया को ज्ञान का मार्ग दिखाया। गीता में कर्म, ज्ञान और भक्ति योग का सार है, जो जीवन की हर चुनौती का सामना करने की प्रेरणा देता है।कर्म: कृष्ण ने हमेशा कर्म पर जोर दिया। उन्होंने सिखाया कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन बिना फल की इच्छा के करना चाहिए। उनका जीवन स्वयं एक कर्मयोगी का उदाहरण है, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अनेक युद्धों में भाग लिया।
श्री कृष्ण का जीवन दुष्टों का नाश करने और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। उन्होंने कंस, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अहंकारी और अत्याचारी शासकों का अंत किया। यह हमें सिखाता है कि जब अन्याय बढ़ता है, तो उसका विरोध करना हमारा कर्तव्य है। कृष्ण का जीवन राष्ट्र निर्माण का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने यादवों को एकजुट किया और द्वारका जैसा एक नया और समृद्ध राज्य स्थापित किया। उन्होंने विभिन्न राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखने और शांति स्थापित करने का प्रयास किया। उनका राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता आज भी एक आदर्श शासन के लिए प्रेरणा का स्रोत है। भगवान कृष्ण ने परिवार और संबंधों के महत्व को भी दर्शाया। उन्होंने अपने माता-पिता, यशोदा और नंद बाबा के प्रति असीम प्रेम दिखाया। वे अपने मित्र सुदामा के प्रति अपनी मित्रता को अंत तक निभाते रहे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि परिवार और दोस्तों के साथ रिश्ते को कैसे संजोकर रखना चाहिए।
जन्माष्टमी का पर्व केवल भगवान के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि उनके जीवन से मिली शिक्षाओं को आत्मसात करने का अवसर है। यह हमें भक्ति, ज्ञान, कर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, ताकि हम अपने जीवन और समाज को बेहतर बना सकें।
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