Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

शास्त्र और इतिहास से सिद्ध शाकद्वीपीय (मग) ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा – मंदिरों के अभिलेखों से मिला प्रमाण

शास्त्र और इतिहास से सिद्ध शाकद्वीपीय (मग) ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा – मंदिरों के अभिलेखों से मिला प्रमाण

पटना। सार्वभौम शाकद्वीपीय ब्राह्मण महासंघ के राष्ट्रीय एवं बिहार प्रदेश अध्यक्ष सतीश कुमार पांडेय ने कहा है कि शाकद्वीपीय (मग) ब्राह्मणों की धार्मिक प्रतिष्ठा केवल पुराण कथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि शास्त्रीय आदेशों और ऐतिहासिक अभिलेखों से प्रमाणित है। यह समुदाय प्राचीन काल से वेदपारंगत, सूर्योपासक और यज्ञ-कुशल आचार्यों के रूप में प्रतिष्ठित रहा है, जिनकी भूमिका आज भी धार्मिक परंपराओं में विशेष स्थान रखती है।

शास्त्रीय आधार
पांडेय ने बताया कि बृहत्संहिता (अध्याय 60, श्लोक 19, चौखम्बा संस्कृत सीरीज़, वाराणसी, 2015, पृ. 743) में स्पष्ट निर्देश है कि जिस देवता की प्रतिमा हो, उसकी प्रतिष्ठा उसी देवता के उपासक और वेदज्ञ वर्ग द्वारा की जानी चाहिए। उदाहरणस्वरूप, विष्णु की मूर्ति की प्रतिष्ठा भागवत करेंगे और सूर्य की मूर्ति की प्रतिष्ठा मगा ब्राह्मण करेंगे। यह निर्देश वराहमिहिर जैसे खगोल-ज्योतिषाचार्य का था, जो उस युग की धार्मिक-सामाजिक मान्यता का आधिकारिक हिस्सा था। यदि मगा ब्राह्मण अवैदिक या निकृष्ट माने जाते, तो उन्हें प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठा जैसे महाकर्म का अधिकारी नहीं बनाया जाता।

अभिलेखीय प्रमाण
सिर्फ शास्त्रों में ही नहीं, बल्कि देशभर के प्राचीन मंदिरों में मगा ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा भूमिका शिलालेखों और अभिलेखों में दर्ज है—

  • मोढेरा सूर्य मंदिर, गुजरात (11वीं सदी) के शिलालेख (The Sun Temple of Modhera, ASI Monograph Series No. 23, 1975, पृ. 58-60) में आचार्य मगा देवभट्ट का नाम दर्ज है, जो प्रतिष्ठा-कर्म के प्रधान पुरोहित थे।
  • रणकपुर और भद्राजून सूर्य मंदिर, राजस्थान के अभिलेख (Rajasthan Archaeological Department Annual Report, 1985, पृ. 112-115) में आचार्य सोमेश्वर मगा का उल्लेख है।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा (13वीं सदी) के शिलालेख (Epigraphia Indica, Vol. 32, 1957, pp. 240–246) में आचार्य मगा माधव भट्ट और आचार्य मगा विष्णु भट्ट के नाम अंकित हैं।
  • कर्णावती सूर्य मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश (17वीं सदी) के अभिलेख (*MP District Gazetteer: Ujjain, 1992, पृ. 74) में आचार्य मगा हरिनंदन का नाम दर्ज है।
  • गया, बिहार के प्राचीन सूर्य मंदिरों के पुनःप्राण-प्रतिष्ठा अभिलेख (*Bihar State Gazetteer: Gaya, 1983, पृ. 134–136) में आचार्य मगा रघुनाथ शर्मा का उल्लेख है।
  • अरासावली सूर्य मंदिर, श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश (*AP State Archaeology Dept. Annual Report, 1978, पृ. 45-47) में आचार्य मगा सोमदेव का नाम मिलता है।
  • मोडनिमाल और शिवला सूर्य मंदिर, महाराष्ट्र (Bombay Presidency Gazetteer, Vol. 7, 1897, पृ. 212–214) में 19वीं सदी तक प्रतिष्ठा-विधान में आचार्य मगा लक्ष्मीनारायण का उल्लेख है।


ऐतिहासिक निरंतरता का प्रमाण
इन शिलालेखों और अभिलेखों में दर्ज नाम—आचार्य मगा देवभट्ट, आचार्य सोमेश्वर मगा, आचार्य मगा माधव भट्ट, आचार्य मगा विष्णु भट्ट, आचार्य मगा हरिनंदन, आचार्य मगा रघुनाथ शर्मा, आचार्य मगा सोमदेव और आचार्य मगा लक्ष्मीनारायण—यह सिद्ध करते हैं कि मगा ब्राह्मणों का यह धार्मिक अधिकार और सम्मान अलग-अलग राज्यों और सदियों में निरंतर मान्य रहा है।

आधुनिक संदर्भ में महत्व
सतीश पांडेय ने कहा कि आज जब जातिगत पहचान और धार्मिक अधिकार को लेकर पूर्वाग्रह और राजनीति हावी रहती है, तब यह प्रमाण स्थापित करते हैं कि ब्राह्मणत्व का निर्धारण केवल जन्म से नहीं, बल्कि गुण, कर्म और शास्त्रसम्मत अधिकार से होता है। उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संतुलित और सशक्त रखना चाहते हैं, तो शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की भूमिका और योगदान को मान्यता व सम्मान देना आवश्यक है।

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ