आचार्य निशान्तकेतु की स्मृति में इस वर्ष से दिया जाएगा साहित्य साधना सम्मान

- निधन पर साहित्य सम्मेलन में हुई शोक-सभा, साहित्यकारों ने कहा अद्भुत प्रतिभा के मनीषी साहित्य-सेवी थे
पटना, २१ अगस्त। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इसी वर्ष से आचार्य चंद्र किशोर पाण्डेय 'निशान्तकेतु' की स्मृति में 'आचार्य निशान्तकेतु साहित्य साधना सम्मान' आरम्भ करेगा। हिन्दी साहित्य में विशिष्ट अवदान के लिए मनीषी विद्वान इस सम्मान के अधिकारी होंगे। यह घोषणा साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने गुरुवार को आचार्य निशान्तकेतु के निधन पर सम्मेलन सभागार में आयोजित शोक-सभा में की।
शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए डा सुलभ ने कहा कि निशान्तकेतु जी की प्रतिभा और साधना चकित करने वाली है। भाषा की सेवा और आध्यात्मिक चिंतन उन्होंने बाल्य-काल से ही आरम्भ कर दिया था। माध्यमिक-विद्यालय की शिक्षा के लिए उन्हें प्रतिदिन २० किलोमीटर की पद-यात्रा करनी पड़ती थी। पैदल चलते उन्होंने संस्कृत का विशेष ग्रंथ 'अमरकोश' को कंठाग्र कर लिए था। उपनिषद आदि प्राच्य-ग्रंथ पढ़ लिए थे। विद्यार्थी-जीवन में ही पाँच स्वर्ण-पदक अर्जित कर चुके थे। वर्ष १९६० में हिन्दी से परास्नातक की परीक्षा उतीर्ण की और परीक्षा-परिणाम आने के दूसरे ही दिन पटना विश्व विद्यालय के तत्कालीन कुलपति वशिष्ठ नारायण सिंह ने बुलाकर बिहार नेशनल कालेज में व्याख्याता नियुक्त कर दिया। उसी दिन, उसी महाविद्यालय के प्राचार्य डा दिवाकर सिंह ने उनका साक्षात्कार लिया था और नियुक्ति की अनुशंसा की थी। शीघ्र ही उनका स्थानांतरण पटना महाविद्यालय में हो गया। ३७ वर्ष की अध्यापन-सेवा के पश्चात विभागाध्यक्ष के पद से वर्ष १९९७ में मुक्त हुए। ९० वर्ष की आयु में अपना देह छोड़ने से पूर्व उन्होंने १०० से अधिक मूल्यवान ग्रंथों का प्रणयन किया, जिनमें काव्य, कथा, उपन्यास, समालोचना, निबन्ध, संस्मरण, कोश-ग्रंथ, योग और अध्यात्म, भाषा-विज्ञान एवं साक्षात्कार के ग्रंथ सम्मिलित है। इनके अतिरिक्त उन्होंने दर्जनों साहित्यिक-ग्रंथों एवं पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे बहुभाषाविद भाषाविद थे और सम्मेलन द्वारा संचालित हो रहे 'सर्व भाषा महाविद्यालय' के संचालन में भी उनकी बड़ी भागीदारी थी। सम्मेलन-पत्रिका 'साहित्य' के संपादन में भी उनका योगदान था। अपनी कार्य-व्यस्तता के कारण वे कई-कई दिनों तक सम्मेलन परिसर में रह जाया करते थे। हिन्दी-साहित्य उनके महनीय अवदानों से समृद्ध हुआ है। उनके निधन से हुई क्षति का आकलन नहीं किया जा सकता।
अपने शोकोदगार में सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि निशान्तकेतु जैसे लोग मरते नहीं हैं। वे अपनी कृत्यों में सदैव जीवित रहेंगे। उनकी विद्वता संपूर्ण भारतवर्ष को आलोकित करती रही है। वे सच्चे अर्थों आचार्य थे। वे हिन्दी साहित्य के रत्न थे, जिसे हमने खो दिया है।
सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि निशांतकेतु जी का प्रयाण ऋषि-परंपरा के एक साहित्यर्षि का अवसान है। उन्होंने कई पीढ़ियों को जागृत किया। युवाओं के लिए उनके शब्द बड़े उत्प्रेरक होते थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा पुष्पा जमुआर, डा पूनम आनन्द, विभा रानी श्रीवास्तव, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, श्याम बिहारी प्रभाकर, सिद्धेश्वर, डा प्रतिभा सिन्हा, आचार्य विजय गुंजन, डा सरिता कुमारी, डा अर्चना त्रिपाठी, आराधना प्रसाद, डा पल्लवी विश्वास, डा इंदु पाण्डेय, ईं अशोक कुमार, कृष्ण रंजन सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, प्रवीर कुमार पंकज, डा सुमेधा पाठक, इन्दु भूषण सहाय, निर्मला सिंह, नीता सहाय, रौली कुमारी, मोईन गिरीडीहवी, उत्तरा सिंह, चन्दा मिश्र, भास्कर त्रिपाठी, अविनय काशीनाथ, राजेश राज आदि ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए।
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