बिहार म्यूजियम बिएनाले 2025 : संस्कृति , कला और विरासत का संगम

- मोहिनी प्रिया
तीन दिवसीय 7 से 9 अगस्त 2025 को बिहार संग्रहालय के भव्य प्रांगण में मनाया गया बिहार म्यूजियम बिएनाले 2025 का आयोजन वैश्विक कला मंच पर " ग्लोबल साउथ : इतिहास की साझेदारी " विषय के तहत इसके योगदान , विविधता और रचनात्मकता को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया गया , जिसमें भारत सहित अनेक देशों के प्रतिष्ठित कलाकार , विचारक , कला समीक्षक , शिक्षाविद , क्यूरेटर और संस्थानों के प्रतिनिधि एकसाथ एकत्र हुए ।

बिहार संग्रहालय बिएनाले समकालीन संग्रहालयों की पारम्परिक कार्यप्रणाली में एक बड़े बदलाव का आरंभ है । यह दुनिया का पहला ऐसा बिएनाले है जो पूरी तरह संग्रहालय - केंद्रित है और वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक संस्थाओं के बुनियादी स्वरूप को बदलने का प्रयास करता है । यह क्रांतिकारी पहल इस सोच पर आधारित है कि जहाँ एक ओर दुनिया भर में विविध कला अभिव्यक्तियों , रूपाकंन एवं वास्तुकलाओं पर केंद्रित अनेक बिएनाले आयोजित किये जाते हैं , वहीं दूसरी ओर संग्रहालयों के लिए ऐसा कोई विशेष मंच नहीं था , जहाँ वे अपने संग्रहों को प्रदर्शित कर सकें और अपनी कार्यप्रणाली एवं सांस्थानिक दृष्टि को सामने रख सकें । बिहार संग्रहालय द्वारा बिएनाले की यह परिकल्पना संस्कृति के क्षेत्र में एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करती है । यह भारत के साथ - साथ अंतरराष्ट्रीय जगत के संग्रहालयों को भी विचार - विनिमय , सांस्कृतिक संवाद और साझी प्रदर्शनी के लिए विशिष्ट मंच प्रदान करता है ।

बिहार संग्रहालय के महानिदेशक श्री अंजनी कुमार सिंह अपने संबोधन में कहते है कि यह आयोजन केवल कला का प्रदर्शन नहीं है , बल्कि यह संवाद , विचार - विमर्श और सांस्कृतिक आदान- प्रदान का वैश्विक मंच है , जहाँ कलाकार अपने अनुभव और दृष्टिकोण साझा कर रहे हैं ।
बिहार म्यूजियम बिएनाले 2025 का उद्घाटन बिहार के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार द्वारा किया गया । थाईलैंड , इंडोनेशिया , जाम्बिया , मेक्सिको , कोरिया , श्रीलंका सहित अन्य देशों ने प्रदर्शनी लगाई जिसकी रूप-रेखा के बारे में मुख्यमंत्री को जानकारी दी गई । सीएम ने बिएनाले के कलाकारों का उत्साहवर्धन किया । इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों में श्री सम्राट चौधरी , श्री विजय कुमार सिन्हा , श्री मोतीलाल प्रसाद , कला , संस्कृति एवं युवा विभाग के सचिव प्रणव कुमार , अशोक कुमार सिन्हा , श्रवण कुमार , प्रो. रामवचन राय , कुमार रवि , गोपाल सिंह , डॉ अल्का पांडे , डॉ चंद्रशेखर सिंह आदि मौजूद रहे ।
संगोष्ठी में ग्लोबल साउथ का साझा इतिहास विषय पर रोचक चर्चा हुई । दक्षिण अफ्रीका में भारत के उच्चायुक्त प्रो. अनिल सुकलाल ने कहा कि शक्ति का खेल आज भी जारी है , ग्लोबल साउथ का इतिहास मैंने सिर्फ पढ़ा नहीं , उसे जिया है । यूनेस्को प्रतिनिधि टीम कर्टिस ने सांस्कृतिक पहचान को बचाने पर जोर दिया । मेक्सिको से आई ईवा मल्होत्रा ने कहा कि कलाकृतियों को सिर्फ देखना नहीं , महसूस करना भी चाहिए । संगीत और संस्कृति की यात्रा पर चर्चा करते हुए नीधीश त्यागी , डॉ अजीत प्रधान , लैटिन अमेरिका की संगीतज्ञ अलेजांद्रो लेपेज और अफ्रीकी कहानीकार फिलिपा काबाली - कग्वा जैसे वक्ताओं ने बताया कि ग्लोबल साउथ में संगीत आध्यात्मिक यात्रा है । जापान की शोधकर्ता सारी सासाकी ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के आदिवासी मुखौटों की कहानी सुनाई । भारत से डॉ अचल पांड्या ने बताया कि हमारे यहाँ मुखौटे सिर्फ सजावट नहीं , बल्कि अनुष्ठान , कहानियाँ और सामाजिक संदेश देने के साधन हैं । नारी - शक्ति की कहानियाँ सुनाते हुए तीन कलाकार और शोधकर्ताओं ने मंच संभाला । मेक्सिको के जुआन मैनुएल गरिबे लोपेज , भारत की सीमा कोहली और श्रीलंका के जगथ रवींद्र शामिल थे । जुआन मैनुएल ने कहा कि स्त्री - ऊर्जा नदियों , पहाड़ों , धरती समेत हर जगह है । उनकी बातें सुनकर ऐसा लगा मानो माँ गंगा , माँ काली और धरती माँ हमारे सामने जीवंत हो उठीं । आखिरी सत्र में विरासत की बात हुई । थाईलैंड , भारत और इंडोनेशिया के वक्ताओं ने एशिया के स्थापत्य , मिथकों और सांस्कृतिक धरोहरों की बातें की । इंडोनेशिया के डॉ अगुस विद्यात्मोको ने नालंदा और मौराजांबी साइट की तुलना करते हुए बौद्ध धर्म के असर की चर्चा की । संध्या होते ही तीनों दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया । पहले दिन थाईलैंड से सन देर म्यूजिक बैंड ने अपने म्यूजिकल परफॉर्मेंस से सबको झूमने पर मजबूर कर दिया तो दूसरे दिन सब इंडोनेशियाई नृत्य के सम्मोहन में खोए रहे । तीसरे दिन किलकारी के बच्चों की मासूम अदाओं और रंग - बिरंगे लोकनृत्यों ने भारत के अलग - अलग राज्यों की लोकसंस्कृति को नृत्य - नाटिका में पिरो दिया । ऐसा लग रहा था मानो पूरा भारत एक ही मंच पर उतर आया हो । केरल का कलारी पट्टू , ओड़िशा का सम्बलपुरी , असम का बिहू , बिहार का सामा - चकेबा , मणिपुर का लाई हराओबा से माहौल को जीवंत कर दिया । अंततः बिहार म्यूजियम बिएनाले 2025 का आयोजन हमें यह संदेश देता है कि कला सीमाओं से परे है और यह " वसुधैव कुटुम्बकम " की भावना को जीवंत करती है । - मोहिनी प्रिया.jpeg)
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