Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

भारत की संस्कृति, संस्कृत पर आश्रित है – औरंगाबाद में संस्कृत दिवस पर हुआ विचार-विमर्श

भारत की संस्कृति, संस्कृत पर आश्रित है – औरंगाबाद में संस्कृत दिवस पर हुआ विचार-विमर्श

संस्कृत दिवस के अवसर पर औरंगाबाद स्थित संस्कृत महाविद्यालय के प्रांगण में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें “संस्कृत पढ़ना आवश्यक क्यों” विषय पर विस्तृत चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. सूरजपत सिंह ने की, जबकि संचालन का दायित्व धनंजय जयपुरी ने निभाया।
मुख्य अतिथि आचार्य लालभूषण मिश्र एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र, प्रो. रामाधार सिंह, प्रो. विजय कुमार सिंह, शिववचन सिंह, सिद्धेश्वर विद्यार्थी, कन्हैया सिंह, लालदेव प्रसाद सहित कई विद्वान मंचासीन रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ वेद की पुस्तकों के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
स्वागत भाषण में विनय कुमार पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत विश्व की सर्वोत्कृष्ट एवं प्राचीनतम भाषा है, जिसमें वेद-पुराण जैसे महाग्रंथों की रचना हुई। राम भजन सिंह एवं राम सुरेश सिंह ने बताया कि संस्कृत के निरंतर पठन-पाठन से हकलापन सहित कई शारीरिक व्याधियों का उपचार संभव है। शिवपूजन सिंह एवं रामसुरेश सिंह ने संस्कृत व्याकरण की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसमें शब्दों के रूप, काल और कारक अत्यंत व्यवस्थित हैं।
संचालन के दौरान धनंजय जयपुरी ने कहा कि भारत की संस्कृति, संस्कृत पर ही आधारित है और इसके बिना सुंदर संस्कृति की कल्पना अधूरी है। सिद्धेश्वर विद्यार्थी एवं लालदेव प्रसाद ने सुझाव दिया कि केवल मंचीय भाषण से संस्कृत का विकास संभव नहीं, बल्कि इसे घर-परिवार की बोलचाल की भाषा बनाना होगा। प्रो. विजय कुमार सिंह एवं शिववचन सिंह ने संस्कृत की ध्वनि को प्राकृतिक और स्मरण-शक्ति के लिए लाभदायक बताया। शिवनारायण सिंह ने इसे कंप्यूटर एवं कृत्रिम भाषा के लिए उपयुक्त बताया।
डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि संस्कृत को देवभाषा कहा जाता है और इसमें शब्द क्रम बदलने पर भी अर्थ में परिवर्तन नहीं होता। लालभूषण मिश्र ने जानकारी दी कि संस्कृत शब्दकोश में दो करोड़ से अधिक शब्द हैं, जो विश्व की किसी अन्य भाषा में दुर्लभ है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. सूरजपत सिंह ने कहा कि औरंगाबाद की धरती ने बाणभट्ट, मयूर भट्ट, गंगाधर शास्त्री, दामोदर शास्त्री, रंगेश्वरनाथ मिश्र, बंशीधर मिश्र और बलदेव मिश्र जैसे अनेक संस्कृत विद्वानों को जन्म दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि संस्कृत में लेखन और उच्चारण में कोई अंतर नहीं होता।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रफुल्ल कुमार सिंह ने कहा कि प्राचीन भारत में मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी भी संस्कृत बोलते और समझते थे। उन्होंने संस्कृत के निरंतर विकास के लिए प्रयासरत रहने का संकल्प व्यक्त किया। इस अवसर पर राम किशोर सिंह, प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह, प्रो. अयोध्या सिंह, सिंधु मिश्र, विनोद सिंह, संजय सिंह, अरुणजय सिंह सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ