श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी- विमर्श
मार्कण्डेय शारदेयः
इस बार जन्माष्टमी का व्रत कुछ पेंचीदा-सा है।कारण है कि भगवान का अवतार भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था।उस समय रोहिणी नक्षत्र था।और भी ग्रहों एवं राशियों से सम्बन्धित ज्यौतिष योग थे।परन्तु, हम अष्टमी तिथि तथा रोहिणी नक्षत्र को ही प्रमुखता से ग्रहण करते हैं।इन दोनों में भी मध्यरात्रि में व्याप्त अष्टमी जिस दिन होती है, हम गृहस्थ उसी दिन यह व्रत रखते हैं।यदि रोहिणी भी रही तो सोने में सुगन्ध मानते हैं।
अब आएँ, इस बार की अष्टमी पर विचार करें।इस बार 15, अगस्त (शुक्रवार) को सप्तमी रात्रि 12.58 तक है, पश्चात् अष्टमी का प्रारम्भ।16, अगस्त 025 (शनिवार) को अष्टमी रात्रि 10.30 तक, तत्पश्चात् नवमी का प्रवेश।
अब इन दोनों दिनों में से ही किसी एक को ग्रहण करना होगा।कारण कि तिथि की मान्यता सर्वोपरि है।ऐसे में शुक्रवार को मध्यरात्रि में अष्टमी मिलती है, पर अभिजित् मुहूर्त में होना आवश्यक है।लेकिन, वह यहाँ उपलब्ध नहीं है।वहीं शनिवार को 10.30 तक ही अष्टमी है तो यहाँ निशीथ-व्यापिनी अष्टमी कैसे हो सकती है? रोहिणी तो 17 अगस्त (रविवार) को हो रही है।ऐसे में उदयव्यापिनी अष्टमी को स्वीकार कर शास्त्रीयता 16, अगस्त (शनिवार) के ही पक्ष में है।इसीलिए वाराणसी के हृषीकेश, महावीर एवं विश्वपंचांग के साथ ही दरभंगा (बिहार) के विश्वविद्यालय पंचांग पर दृष्टि डालें तो ये सभी शनिवार के ही पक्षधर हैं।इस दिन गृहस्थों एवं वैष्णवों का भी यह व्रत होगा।जो सम्प्रदाय-विशेष से रोहिणी को ही सर्वाधिक महत्त्व देते हैं, वे वैष्णव-विशेष रविवार मनाएँगे।
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