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स्वाधीनता लेने वीर चले

 

स्वाधीनता लेने वीर चले

स्वाधीनता लेने वीर चले ,
होकर बहुत अधीर चले ।
चिर कामना ये थी हमारी ,
गोरों से ही वे भीर चले ।।
चिर काल से झेले गुलामी ,
इस्लामों ने किया चढ़ाई ।
इस्लामों को परास्त कर ,
शासन किए गोरे आतताई ।।
माॅं भारती ने ली अंगड़ाई ,
गोरों की सत्ता चरमडाई ।
डोल गई थी गोरे‌ हुकूमत ,
गोरे थे गिरते मुॅंह की खाई ।।
स्थिति अब थी काफी गंभीर ,
जैसे धरा चाल भूचाल आया ।
ऐसे भीडे़ हमारे वीर योद्धा ,
धरा किल महाकाल आया ।।
भारत माॅं तब बहुत हरषाई ,
जब गोरों का हुआ बिदाई ।
एक था तब यह धर्म हमारा ,
हम भारतीय सब भाई भाई ।।
किंतु भाई को ये रास न आई ,
नफरत की ऐसी आग लगाई ।
अखंड भारत हो गया खंडित ,
खंडित कराने में शर्म न आई ।।
हुआ विखंडित अपना भारत ,
एक तरफ ये हिंदुस्तान हुआ ।
अलग हुआ जब अपना भाई ,
उसका घर पाकिस्तान हुआ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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