जब तक तन में प्राण रहे मैं जय-जय हिंदुस्तान लिखूँ -----!

- साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई राष्ट्रीय-गीत-गोष्ठी, विविध छंदों से किया देश और वीरों का नमन
पटना, १६ अगस्त। "मैं विश्व गगन के वक्ष-स्थल पर भारत का गौरव गान लिखूँ/ जब तक तन में प्राण रहे, मैं जय-जय हिंदुस्तान लिखूँ!”, --- "दुनिया भर में महाशक्ति बनने का लक्ष्य हमारा है/ अखिल विश्व में सबसे प्यारा भारत देश हमारा है" ----- "तू वसुधा का मानस हृदय/ तू मनुष्यता का मन-प्राण / तुम सृष्टि-कर्ता की अमर-कृति / तू माँ मेरी भारत महान! ऐ माँ ! तुझ पर हमसब क़ुर्बान!”
राष्ट्रीय और देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत ऐसी ही पंक्तियों से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का कण-कण गूँज रहा था। तालियों की गड़गड़ाहट और लहराते तिरंगे से श्रोतागण कवियों और कवयित्रियों को मादक उत्साह दे रहे थे। शुक्रवार को सम्मेलन सभागार में स्वतंत्रता-दिवस समारोह-सह-राष्ट्रीय गीत गोष्ठी का आयोजन किया गया था।
चंदा मिश्र की राष्ट्र-वंदना से आरंभ हुई गीत गोष्ठी में तीन घंटे से अधिक समय तक तीस से अधिक कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं के पाठ किए। कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने अपनी इन पंक्तियों से श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया कि - “मैं कवि हूँ नित सहज भाव से, राग भारती गाऊँ/ छंद लिखूँ भारत के हित में, ऋण जननी के चुकाऊँ/ मातृ-भूमि के चरणों पर गीतों के फूल चढ़ाऊँ/ कोटि नमन तुम्हें अभिनन्दन है, पावन हिंद महान लिखूँ/ जब तक तन में प्राण रहे मैं जय-जय हिंदुस्तान लिखूँ !”
कवि-पत्रकार हृदय नारायण झा के मधुर स्वर से पढ़े गए इस गीत को भी श्रोताओं ने मन से सुना कि "देश-भक्ति में जीवन जीने का आदर्श यहाँ क़ायम है/ देश की रक्षा ख़ातिर वीर जवानों का जलवा क़ायम है/ दुनिया भर में महाशक्ति बनने का लक्ष्य हमारा है/ अखिल विश्व में सबसे प्यारा भारत देश हमारा है"। सुकंठी कवयित्री आराधना प्रसाद ने इन पंक्तियों को स्वर दिए कि - “ धरती से अम्बर तक जिसकी अपनी अलग पहचान, तिरंगे की है शान/ जिसकी एक लहर पर अपना तन मन धन कुरबान, तिरंगे की है शान!”
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, नवगीत के वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन, डा रत्नेश्वर सिंह, अभिलाषा सिंह, डा पुष्पा जमुआर, डा पूनम आनन्द, शुभचंद्र सिन्हा, डा मीना कुमारी परिहार, इंदु उपाध्याय, विभारानी श्रीवास्तव, श्याम बिहारी प्रभाकर, जय प्रकाश पुजारी, सिद्धेश्वर, प्रो समरेंद्र नारायण आर्य, नूतन सिन्हा, ईं अशोक कुमार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, ईं आनन्द किशोर मिश्र, डा आर प्रवेश, इंदु भूषण सहाय, पंकज प्रियम, अर्जुन प्रसाद सिंह, गोपाल कृष्ण मिश्रा, अरुण कुमार श्रीवास्तव, सदानन्द प्रसाद, वायुसैनिक रवि रंजन आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का प्रभावशाली पाठ किया।
अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने इन पंक्तियों से भारत-वंदना की कि - “तू वसुधा का मानस हृदय/ तू मनुष्यता का मन-प्राण / तुम सृष्टि-कर्ता की अमर-कृति / तू माँ मेरी भारत महान! ऐ माँ ! तुझ पर हमसब क़ुर्बान” ।
आरंभ में डा सुलभ ने सम्मेलन प्रांगण में राष्ट्रीय-ध्वज फहराया और अपने उदबोधन में उन्होंने साहित्य समाज से प्रेरणा के गीत गाने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि नैतिकता का ह्रास इस समय का सबसे बड़ा संकट है। हर व्यक्ति स्वार्थी और अपने स्वार्थ में नीचे गिरने की होड़ में है। भारत के अमर बलिदानियों ने इस भारत का स्वप्न नहीं देखा था। हमें बलिदानियों के सपनों का भारत बनाने के लिए उत्साह के गीत गढ़ने होंगे।
इस अवसर पर 'लेख्य मंजूषा' द्वारा प्रकाशित और विभारानी श्रीवास्तव द्वारा संपादित पत्रिका 'साहित्यिक स्पंदन' का लोकार्पण बिहार प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अधिकारी आनन्द बिहारी प्रसाद ने किया। वरिष्ठ साहित्यकार मधुरेश नारायण, प्रो अनिता राकेश,रंजना सिंह तथा शिवेश प्रसाद ने, राष्ट्रीय चेतना की लघुकथाओं की समीक्षा प्रस्तुत की। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
डा विनोद शर्मा, कथा-लेखिका गार्गी राय, प्रवीर कुमार पंकज, सुनील कुमार, अरविंद अकेला, रंजन कुमार अमृतनिधि, निर्मला गुप्ता, ज्योति श्रीवास्तव, भानु प्रताप सिंह, तनुजा सिन्हा, प्रियंका श्रीवास्तव, सत्यदेव सिंह 'राज', अमन वर्मा, नन्दन कुमार, संजय कुमार आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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