घर का मुखिया
जय प्रकाश कुवंर
हर घर का मुखिया भी,औरों की तरह, एक साधारण इंसान होता है। अपने कर्तव्यों के निर्वाहन के चलते, वह इतना महान होता है।। सबके जैसा वह भी तो, हाड़ मांस का एक पुतला है। जैसे सबको दुख दर्द होता है, मुखिया को भी वैसे ही होता है।। सबको खिलाकर, वह, फिर खुद खाने जाता है। सबको पहनाकर, वह, फिर अपना तन ढंक पाता है।। जब घरवाले सुख से सोते हैं, वह अकेला जागता रहता है। सबका फिक्र अपने माथे लिए, घर के बारे में सोचता रहता है।। घर में किसी को, कोई परेशानी हो, उससे ज्यादा चिंता मुखिया को होती है। उसके आंसू बहे ना बहे, पर घर के मुखिया की, दिल और आंखें रोती है। सबकी अपनी दिनचर्या है, सोना , उठना , खाना और, अपने काम में निकल जाना। पर मुखिया हरदम सोचता रहता है, कैसे सुरक्षित रहेगा, इन सबके रहने का यह ठिकाना।। सब नहाते हैं, घंटी डोलाते हैं, भगवान् से कहते हैं, हे प्रभु, मेरा कुशल मंगल रखना। पर घर का मुखिया, बिना नहाये, बिना खाये, अपने मन मंदिर में बैठे प्रभु से, चौबीस घंटे यही प्रार्थना करता है कि, हे प्रभु, तुम इस घर के, सबका कुशल मंगल रखना।।
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