भारत गौरव
जिसका शीश मुकुट हिमालय ,जिससे निकली गंग की धारा ।
प्रवाहित होती अलग संस्कृति ,
जिससे भारत विश्व को प्यारा ।।
अजूबा नहीं विश्व प्यारा बनना ,
भारत प्यारा है देव देवियों को ।
भारत माता की अपनी संस्कृति ,
भारत गौरव भारत सेवियों को ।।
गर्व हमें अपनी भारतीयता का ,
भारत में जन्मे और बढ़े पले हैं ।
भारतीयता के ही कर्म पथ पर ,
राष्ट्र धर्म को लेकर हम चले हैं ।।
भारत माता के हम श्रवण पुत ,
भारत माता का काॅंवर उठाऍंगे ।
हुई वेदना जब भारत माता को ,
माॅं का वेदना सह कहाॅं पाऍंगे ।।
वह समझे क्या भारत का दर्द ,
जन्म जिसने यहाॅं पाया नहीं ।
भारत माता उनसे हुई दुखित ,
जो भारतीयता निभाया नहीं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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