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नाक के रास्ते दिमाग पर हमला करता है - “ब्रेन-ईटिंग अमीबा”

नाक के रास्ते दिमाग पर हमला करता है - “ब्रेन-ईटिंग अमीबा”

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक श्री जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खबर |

मानव सभ्यता ने विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में कई बड़ी सफलताएँ हासिल की हैं। फिर भी प्रकृति के छोटे-छोटे जीव कभी-कभी ऐसे भयानक संकट खड़े कर देते हैं, जिनसे निपटना अत्यंत कठिन हो जाता है। हाल ही में केरल के कोझिकोड से एक खबर ने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। केवल नौ साल की एक बच्ची की मौत “निग्लेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri)” नामक सूक्ष्मजीव के कारण हुई। इसे आमतौर पर ब्रेन-ईटिंग अमीबा कहा जाता है। यह नाम ही अपने आप में भयावह है। यह जल-जनित सूक्ष्मजीव मानव मस्तिष्क पर सीधा हमला करता है और अधिकांश मामलों में मौत का कारण बनता है।

“निग्लेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri)” एक प्रकार का मुक्तजीवी (free-living) अमीबा है। यह कोई सामान्य जीव नहीं बल्कि एक ऐसा सूक्ष्म परजीवी है, जो गर्म मीठे पानी में पनपता है। इसे 'ब्रेन-ईटिंग अमीबा' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कर सीधे दिमाग तक पहुंचता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है।

वैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार, यह Percolozoa समूह का सदस्य है। इसका आकार सूक्ष्म है, जो केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। यह तीन रूपों में पाया जाता है- ट्रॉफोजोइट (सक्रिय), फ्लैजेलर (फ्लैगेला वाला), और सिस्ट (निष्क्रिय)। सबसे खतरनाक रूप ट्रॉफोजोइट होता है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को खाता है।

ब्रेन-ईटिंग अमीबा मुख्य रूप से मीठे और गुनगुने पानी के स्रोतों में पनपता है। झीलें और तालाब- गर्मियों में जहाँ पानी ठहरा हुआ होता है। नदियाँ और जलाशय- विशेष रूप से वह जिनका प्रवाह धीमा है। स्विमिंग पूल- यदि उनमें पर्याप्त क्लोरीन न हो। गर्म पानी के झरने (Hot Springs)। नल का पानी- यदि उसे उबालकर या फिल्टर करके इस्तेमाल न किया जाए। यह 25 से 40 डिग्री सेल्सियस तक के पानी में अधिक सक्रिय रहता है। गर्मी का मौसम इसके प्रसार के लिए सबसे उपयुक्त समय है।

यह अमीबा शरीर में नाक के रास्ते प्रवेश करता है। जब कोई व्यक्ति तालाब, नदी या स्विमिंग पूल में तैरता है और संक्रमित पानी नाक में चला जाता है, तब अमीबा नाक की झिल्ली को पार करता है। इसके बाद यह घ्राण तंत्रिका (olfactory nerve) से होते हुए सीधे मस्तिष्क तक पहुंचता है। मस्तिष्क में यह कोशिकाओं को नष्ट करता है और सूजन (swelling) पैदा करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह पीने के पानी से संक्रमण नहीं फैलाता, केवल नाक के जरिए ही यह खतरनाक बनता है।

यह फैलता है तालाब, नदी या झील में तैरने के दौरान। असुरक्षित स्विमिंग पूल में तैरने से। वॉटर स्पोर्ट्स, स्कूबा डाइविंग, वाटर स्लाइड्स। घर पर नाक साफ करते समय (यदि पानी उबला हुआ न हो)। शॉवर लेते समय यदि पानी दूषित हो।

संक्रमण के 3 से 7 दिन के भीतर इसके लक्षण दिखने लगते हैं। गले में खराश। तेज सिरदर्द। बुखार और उल्टी। गर्दन में अकड़न। भ्रम और मतिभ्रम। बार-बार दौरे पड़ना। स्वाद और गंध की क्षमता में बदलाव। मस्तिष्क की सूजन और तीव्र दर्द। इस स्थिति को प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहते हैं, जो अत्यंत घातक होती है।

यह बीमारी लगभग हमेशा जानलेवा होती है। लक्षण दिखने के बाद 5 दिन के भीतर अधिकांश मरीजों की मृत्यु हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (CDC) के आंकड़ों के अनुसार, संक्रमण के मामलों में मृत्यु दर 97% तक है। अधिकतर मामले बच्चों और किशोरों में देखे जाते हैं, विशेषकर 14 वर्ष की औसत आयु वर्ग में। पुरुषों में यह संक्रमण अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है।

अमेरिका में हर साल औसतन 3-4 मामले दर्ज किए जाते हैं। भारत में यह अपेक्षाकृत नया खतरा है लेकिन हाल के वर्षों में इसके मामले बढ़ रहे हैं। केरल में नौ वर्षीय बच्ची की मौत ने पूरे देश को चेताया है कि इस संक्रमण को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

निग्लेरिया फाउलेरी संक्रमण का इलाज बेहद कठिन है। अब तक बहुत कम मरीज ही जीवित बच पाए हैं। अम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin B) नामक दवा को इंट्रावीनस और इंट्राथेकल (सीधे रीढ़ की हड्डी के आसपास) दिया जाता है। कुछ मामलों में मिल्टेफोसिन (Miltefosine) नामक दवा का उपयोग किया गया है। उपचार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि संक्रमण को कितनी जल्दी पहचाना गया। समस्या यह है कि शुरुआती लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम या मस्तिष्क ज्वर जैसे लगते हैं, जिससे समय पर सही पहचान मुश्किल हो जाती है।

इसका इलाज लगभग असंभव है, इसलिए बचाव ही एकमात्र उपाय है। तालाब या झील में तैराकी से बचें। यदि तैरना आवश्यक हो तो नोज क्लिप का उपयोग करें। घर पर नाक साफ करने (नेति क्रिया, जलबस्ती, आदि) के लिए उबला और ठंडा किया हुआ पानी ही इस्तेमाल करें। स्विमिंग पूल में पर्याप्त क्लोरीन होना सुनिश्चित करें। गंदे पानी से दूर रहें, विशेष रूप से गर्मियों में। बच्चों को असुरक्षित जल स्रोतों में नहाने या खेलने से रोकें।

सरकार को सार्वजनिक जलाशयों की नियमित जांच करनी चाहिए। स्विमिंग पूल्स में क्लोरीन की पर्याप्त मात्रा का पालन सुनिश्चित करना होगा। स्कूलों और समाज में जागरूकता अभियान चलाए जाएं। चिकित्सा संस्थानों को संक्रमण की पहचान और त्वरित उपचार के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

ब्रेन-ईटिंग अमीबा निग्लेरिया फाउलेरी मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह न केवल जानलेवा है बल्कि इसके इलाज की कठिनाई इसे और खतरनाक बना देती है। हाल ही में केरल की बच्ची की मौत यह सिखाती है कि पानी से जुड़ी बीमारियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। सबसे महत्वपूर्ण है बचाव और जागरूकता। यदि लोग सतर्क रहें, पानी से जुड़ी गतिविधियों में सावधानी बरतें और स्वच्छता बनाए रखें, तो इस जानलेवा अमीबा से बचा जा सकता है। 

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