शूल बने हो जिस पथ के तुम
तुम धरो पाक का सलवार ,मैं राणा का ये तलवार धरूॅं ।
तुम बनो पाक का ये चमचा ,
मैं भारत में ये हथियार भरूॅं ।।
तुम कर लो पाक चीन पूजा ,
मैं माॅं भारती की पूजा करूॅं ।
तुम देख लो विदेश के सपने ,
मैं वंदेमातरम् ही गूॅंजा करूॅं ।।
बनो तुम जयचंद का औलाद ,
मैं भी राणा भामाशाह बनूॅं ।
कहीं बनूॅं मैं सुभाष आजाद ,
तो कहीं इन्हीं का राह बनूॅं ।।
शूल बने हो जिस पथ के तुम ,
तेरे लिए मैं भी ये त्रिशूल बनूॅं ।
तुझे चुभकर मैं बाहर फेंक दूॅं ,
उनके लिए मैं सुंदर फूल बनूॅं ।।
जिस पथ चलते वीर अनेक ,
उसी पथ का सबका मूल बनूॅं ।
जो पथ लेते हैं ये वीर बहादुर ,
मैं भी उनके ही अनुकूल बनूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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