तुम यूँ ही चलती रहो और सदा मुस्कराती रहो,
मैं तेरे आगे चलूँगा, राह के शूल चुगता रहूँगा।है नहीं मुश्किल जहां में, कुछ भी गर ठान लो,
तुम कहो दिन को रात, चाँद तारे लाकर रहूँगा।
हम अगर चाहें तो, नदिया की धारा मोड दें,
रुख हवाओं का बदल़, बादलों को मोड दें।
है नही मुश्किल जहां में, कुछ भी गर ठान लो,
लक्ष्य दशरथ माँझी सा, पर्वतों को मोड दें।
हौसले अपने बुलन्द, राष्ट्र हित सब समर्पण,
रावण सी भक्ति मन में, बारम्बार शीश अर्पण।
है नही मुश्किल जहां में, कुछ भी गर ठान लो,
पवित्रता गंगा सी हो, अस्थियाँ भी जिसमें तर्पण।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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