"छोड़ने की शक्ति: आत्मा की उड़ान"
त्याग अक्सर वियोग या हार का प्रतीक माना जाता है, पर वास्तव में वह आत्मा की उड़ान का आरंभ है। जब हम किसी वस्तु, संबंध या स्थिति को छोड़ते हैं, तो हम केवल बाहर की पकड़ नहीं छोड़ते — हम अपने भीतर की सीमाओं को भी पार करते हैं।"जो छोड़ दे, वही जानता है कि भीतर क्या शेष है।" यह वाक्य हमें भीतर झाँकने का निमंत्रण देता है। त्याग हमें अपने अस्तित्व की गहराइयों से परिचित कराता है, जहाँ ना भय होता है, ना आवश्यकता — केवल शुद्ध चेतना का स्पर्श।
"पकड़ में भय है, छोड़ने में विश्वास।" यही त्याग की मूल भावना है — जब हम छोड़ते हैं, तब हम जीवन के प्रति गहन आस्था प्रकट करते हैं। यह आत्मबल की चरम अभिव्यक्ति है, जहाँ व्यक्ति बाह्य आश्रयों से ऊपर उठकर स्वयं का आश्रय बन जाता है।
त्याग कोई पराजय नहीं, बल्कि उस आंतरिक स्वतंत्रता की घोषणा है, जहाँ आत्मा निर्भीक होकर अपने सत्य पथ पर उड़ान भरती है। यही त्याग का सच्चा अर्थ है — खोकर भी पूर्ण होना।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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