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बाढ़ का कहर

बाढ़ का कहर

गंगा किनारे गाँव पर।
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कोई सोचा नहीं था,
कभी ऐसा दिन भी आयेगा।
सबका आश्रय आशियाना ,
माँ गंगा में समायेगा।।
कौड़ी कौड़ी जोड़कर,
सबने पक्का आशियाना बनाया था।
माँ का दर्शन मिलता रहे,
यही सोच किनारे लाया था।।
देखते देखते वर्षों में गंगा किनारे,
पूरा गाँव बस गया था।
सुख चैन का जीवन,
सबको रास हो गया था।।
किस भूल ने मां का,
दिल अब दुखाया है।
ऐसा बाढ़, ऐसा प्रलय,
इस बार यहाँ आया है।।
आशियाना के साथ ही सब कुछ,
पूरे गाँव का गंगा में समा गया।
देखते देखते ही सबके जीवन में,
घुप अंधेरा छा गया।।
अब न खाने को अन्न है,
न रहने को घर है।
खुले आसमान के नीचे,
पूरे गाँव का जीवन वसर है।।
यह आपदा क्षणिक नहीं,
अब लम्बे संघर्ष की लड़ाई है।
अनचाहे प्रकृति का प्रकोप,
पूरे गाँव पर जो बन आई है।।
इसलिए कहा जाता है,
नदी और पहाड़ से दूर रहो।
पर यहाँ आधुनिक दौर में,
किसी की सुनता कौन है।। ं
अब यह विकराल रूप देखकर,
सबकी जबान मौन है।।
कुछ सिसक रहे हैं, कुछ बिलख रहे हैं,
कुछ सुध बुध खोकर पड़े हैं अचेत।
पर अब रोने और पछताने से क्या होगा,
सब कुछ बर्बाद हो गया, चिड़िया चुग ग‌ई खेत।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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