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विदेह और वैदेही

विदेह और वैदेही

जय प्रकाश कुवंर
रामायण हिन्दूओं का एक धार्मिक ग्रंथ है। रामायण का शाब्दिक अर्थ होता है राम की यात्रा। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। राम+अयन, जिसमें राम का अर्थ है भगवान राम और अयन का अर्थ है यात्रा। अतः कहा जा सकता है कि रामायण एक महाकाव्य है, जिसमें भगवान राम के जीवन, उनके कार्यों और मनुष्य रूप में उनके द्वारा झेले गये कष्टों का वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा संकलित किया गया है।
वैसे तो रामायण में बहुत सारे पात्रों के बारे में चर्चा की गयी है, लेकिन मुख्य रूप से दो परिवारों की कहानी आती है। एक अयोध्या के महाराजा दशरथ जी की, जिसमें उनके पुत्र अपने भाईयों सहित स्वयं भगवान श्री राम हैं। दूसरा मिथिला के राजा जनक जी की, जिसमें उनकी पुत्री भगवान श्री राम की पत्नी सीता जी हैं।
इस कहानी में आज मिथिला के राजा जनक जी के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। हिन्दू महाकाव्य रामायण के अनुसार जनक विदेह के राजा थे, जिन्होंने मिथिला पर शासन किया था। मिथिला के राजा जनक का बिबाह सुनयना से हुआ था और उनका साम्राज्य वर्तमान भारत के बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। जिसकी राजधानी जनकपुर मानी जाती है।
जनक शब्द विदेह के सभी राजाओं द्वारा अपनायी गयी उपाधि थी जो राजा निमि और उनके पुत्र राजा मिथि के वंशज थे। राजा मिथि को विदेह का पहला राजा माना जाता है जिन्हें जनक की उपाधि दी गई थी।
राजा जनक का असली नाम सीरध्वज था, जो राजा ह्रस्वरोमा के पुत्र थे। राजा ह्रस्वरोमा राजा निमि की आठवीं पीढ़ी में मिथिला के राजा हुए थे। उनके दो पुत्र थे, जिनमें बड़े का नाम सीरध्वज और छोटे का नाम कुशध्वज था। जहाँ बड़े पुत्र सीरध्वज ( जनक जी ) का ब्याह सुनयना से हुआ था, वहीं छोटे पुत्र कुशध्वज का ब्याह चंद्रभागा से हुआ था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि असली नाम सीरध्वज होने के अलावा सीता जी के पिता का नाम जनक, विदेह अथवा वैदेह, मिथिलेश आदि भी है। त्रेता युग में राजा जनक को अध्यात्म तथा तत्वज्ञान के विद्वान के रूप में भी जाना जाता था। इसके अलावा जनक जी को एक ज्ञानी और तत्वज्ञानी राजा के रूप में भी देखा जाता था। राजा जनक जी को विदेह इसलिए कहा जाता था कि उन्हें सांसारिक बातों से विरक्ति थी, अर्थात वो शरीर से परे व्यक्ति थे।
रामायण के अनुसार राजा जनक की दो बेटियां थीं, सीता और उर्मिला। वहीं उनके छोटे भाई कुशध्वज की भी दो बेटियां थीं, मांडवी और श्रुतिकीर्ति। इन चारों बेटियों का ब्याह अयोध्या के राजा दशरथ जी के चारों पुत्रों के साथ हुआ था। सीता का राम के साथ, उर्मिला का लक्ष्मण के साथ, मांडवी का भरत के साथ तथा श्रुतिकीर्ति का ब्याह शत्रुघ्न के साथ हुआ था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार थे वैसे ही सीता लक्ष्मी का अवतार थीं। सीता जी का जन्म धरती से हुआ था। सीता शब्द का अर्थ होता है हल से बनी रेखा। सीता जी के जन्म के बारे में पौराणिक कथा है कि एक समय जनक जी के राज्य मिथिला में भयंकर सूखा पड़ा था। इस कारण गुरुओं और आचार्यों के कहने पर राजा जनक ने यज्ञ किया और धरती पर हल चलाया। हल चलाते समय उनका हल जमीन के अंदर एक घड़े से टकराया, जिससे एक सुंदर कन्या निकली। राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया।
जनक पुत्री सीता का अन्य नाम अपने पिता के नाम और राज्य के अनुरूप जानकी, सिया, मैथिली, वैदेही , भूमिजा आदि भी कहा जाता है।

जय प्रकाश कुवंर


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