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ॐकारेश्वर और महाकाल: एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक यात्रा

ॐकारेश्वर और महाकाल: एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक यात्रा

सत्येन्द्र कुमार पाठक
मेरी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत अक्टूबर 2023 में, मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक शहर उज्जैन से हुई। यह पवित्र नगरी क्षिप्रा नदी के तट पर बसी है और यहाँ का मुख्य आकर्षण बाबा महाकाल का भव्य मंदिर है। दो दिवसीय उज्जैन प्रवास के दौरान मैंने केवल बाबा महाकाल के दर्शन ही नहीं किए, बल्कि शहर के कई अन्य महत्वपूर्ण स्थलों को भी करीब से देखा। महाकाल के अलौकिक दर्शन के बाद, मैंने कालभैरव मंदिर जाकर उनसे आशीर्वाद लिया। चिंतामणि गणेश मंदिर में मैंने अपनी मनोकामनाएं व्यक्त कीं और माता काली के मंदिर में शक्ति का अनुभव किया। क्षिप्रा नदी के शांत घाटों पर बैठकर मैंने कुछ पल शांति और आत्मचिंतन में बिताए। इसके अतिरिक्त, मैंने प्राचीन भर्तृहरि गुफा, विद्या के केंद्र सांदीपनि ऋषि आश्रम, नवग्रहों को समर्पित मंगलनाथ मंदिर, और ऐतिहासिक विक्रमादित्य किला व गढ़ का भी भ्रमण किया। उज्जैन की यह यात्रा मेरे लिए न केवल धार्मिक थी, बल्कि इसने मुझे भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत से भी परिचित कराया है। उज्जैन से मैंने बस द्वारा इंदौर की ओर प्रस्थान किया, और फिर वहाँ से एक और बस लेकर मैं ॐकारेश्वर पहुँचा। यह नगर नर्मदा नदी के पवित्र जल से घिरा हुआ है और यहीं पर मुझे जाट होटल में रहने का अवसर मिला, जहाँ से बाबा ॐकारेश्वर मंदिर का मनोहारी दृश्य दिखाई देता था।मेरे ॐकारेश्वर प्रवास के पहले दिन, मैंने सर्वप्रथम नर्मदा नदी के पवित्र जल को नमन किया। इसके बाद, एक नौका पर बैठकर मैं मान्धाता पर्वत की ओर बढ़ा, जहाँ बाबा ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का गर्भगृह स्थित है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद, मैंने पास में ही स्थित ममलेश्वर बाबा के भी दर्शन किए। दोपहर 3 बजे तक मैंने श्री ॐकारेश्वर-श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के युगल दर्शन कर स्वयं को धन्य महसूस किया। दूसरे दिन, मैंने अपनी दिनचर्या सुबह 5 बजे नर्मदा नदी में स्नान के साथ शुरू की। पवित्र जल में डुबकी लगाने के बाद, मैं पूजा सामग्री लेकर पुनः मान्धाता पर्वत पर स्थित बाबा ॐकारेश्वर के दर्शन के लिए पहुँचा। इन दिव्य दर्शनों के उपरांत, मैं श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों से सुशोभित पथ पर चलता हुआ नर्मदा और कावेरी नदी के संगम की ओर बढ़ा। इस पावन संगम पर मैंने स्नान, ध्यान और उपासना की, और यहीं मुझे नर्मदेश्वर शिवलिंग के दर्शन हुए, साथ ही मुझे नर्मदेश्वर के रूप में भगवान शिव लिंग पाषाण की प्राप्ति हुई, जिसे मैं एक अमूल्य आशीर्वाद मानता हूँ।संगम पर स्नान के पश्चात, मैं चने की दाल लेकर बाबा ऋणमुक्तेश्वर के मंदिर की ओर बढ़ा। यह मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से ऋणों से मुक्ति मिलती है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित बाबा ऋणमुक्तेश्वर के दर्शन के बाद, मैंने मंदिर परिसर में स्थित द्वारिकाधीश और अन्य देवी-देवताओं के भी दर्शन किए।ऋणमुक्तेश्वर के दर्शन के बाद, मैंने मान्धाता पर्वत की परिक्रमा आरंभ की। इस परिक्रमा के दौरान, मैंने ताज़े ईख का रस पिया और माता नर्मदा के विहंगम दृश्यों के साथ-साथ एक गौशाला के दर्शन भी किए। परिक्रमा के क्रम में मुझे कई प्राचीन संरचनाएँ देखने को मिलीं, जिनमें प्राचीन द्वार, सोमनाथ, विशाल नंदी प्रतिमा, लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर, नवग्रह मंदिर, और सिद्धनाथ मंदिर प्रमुख थे। इस दौरान मैंने कई बिखरी हुई सांस्कृतिक विरासत के अवशेषों और प्राचीन द्वारों का भी अवलोकन किया। अंत में, मैंने एक बार फिर बाबा ममलेश्वर के दर्शन किए, जिससे मेरी परिक्रमा पूर्ण हुई।
यह पवित्र ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में पुण्यसलिला नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ नर्मदा नदी दो धाराओं में बँटकर एक टापू का निर्माण करती है, जिसे मान्धाता पर्वत या शिवपुरी के नाम से जाना जाता है। नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर से और दूसरी दक्षिण से बहती है, जिसमें दक्षिणी धारा को मुख्य माना जाता है। इसी मान्धाता-पर्वत पर श्री ॐकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग का भव्य मंदिर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में महाराज मान्धाता ने इसी पर्वत पर कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था, जिससे इस पर्वत का नाम मान्धाता-पर्वत पड़ा।
ॐकारेश्वर लिंग स्वयं प्रकृति द्वारा निर्मित है, यह किसी मनुष्य का बनाया हुआ नहीं है। इस लिंग के चारों ओर निरंतर जल भरा रहता है। संपूर्ण मान्धाता-पर्वत को ही भगवान शिव का साक्षात् रूप माना जाता है, इसीलिए इसे शिवपुरी भी कहते हैं और भक्तजन यहाँ श्रद्धापूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं।विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ एक विशाल मेला लगता है, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहाँ भगवान शिवजी को चने की दाल चढ़ाने की परंपरा है। रात्रि में होने वाली शिव आरती अत्यंत भव्य और मनमोहक होती है, जिसका दर्शन प्रत्येक तीर्थयात्री को अवश्य करना चाहिए।
इस ॐकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप माने जाते हैं। एक को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है, जो नर्मदा के दक्षिण तट पर ॐकारेश्वर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यद्यपि ये दोनों मंदिर पृथक हैं, तथापि इनकी गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। पुराणों में इन दोनों लिंगों के प्राकट्य की कथा इस प्रकार वर्णित है: एक बार विंध्यपर्वत ने छह मास तक पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकरजी वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने विंध्य को मनोवांछित वर प्रदान किए। इस अवसर पर अनेक ऋषिगण और मुनि भी उपस्थित थे। उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव ने अपने ॐकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए – एक का नाम ॐकारेश्वर और दूसरे का अमलेश्वर (जो अब ममलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है) पड़ा। यद्यपि दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक हैं, फिर भी इनकी सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें श्री ॐकारेश्वर और श्री ममलेश्वर के दर्शन से प्राप्त होने वाले पुण्य के साथ-साथ नर्मदा-स्नान के पावन फल का भी उल्लेख है। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में कम से कम एक बार इस पवित्र क्षेत्र की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। भगवान ॐकारेश्वर की कृपा से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के उत्तम फल सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के सभी साधन उसके लिए सुलभ हो जाते हैं, और अंततः उसे लोकेश्वर महादेव भगवान शिव के परमधाम की प्राप्ति भी हो जाती है। भगवान शिव तो अपने भक्तों पर अकारण ही कृपा बरसाने वाले हैं; ऐसे में जो लोग यहाँ आकर उनके दर्शन करते हैं, उनके सौभाग्य के विषय में क्या कहना! उनके लिए सभी प्रकार के उत्तम पुण्य-मार्ग सदा-सदा के लिए खुल जाते हैं।
मान्धाता पर्वत की यह विस्तृत परिक्रमा, नर्मदा नदी के संगम और मंदिरों के दर्शन और पवित्र स्पर्श ने मुझे असीम आनंद और आंतरिक शांति का अनुभव कराया। यह यात्रा मेरे लिए केवल तीर्थयात्रा नहीं थी, बल्कि यह आत्म-खोज और प्रकृति के साथ एकात्म होने का एक गहरा अनुभव था, जिसकी स्मृतियाँ सदैव मेरे हृदय में अंकित रहेंगी।


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