कानून व्यवस्था ( व्यंग्य )
जय प्रकाश कुवंरकहीं ना कहीं रोज गोली चलत रही।
बेकसूर आ गुनाहगार लोग अइसहीं मरत रही।।
कबो क्रिमिनल गोली चलइहें, कबो पुलिस चलाई।
दुनों पक्ष का गोली से, मानवता ही मर जाई।।
आखिर थाना पुलिस कवना काम आई।
लोग का मरला पर,ठीक उंहा पहुँच जाई।।
आम जनता इ सब देख के परेशान बा।
कानून व्यवस्था समझल नाहीं आसान बा।।
सब केहू अपना अपना काम में लागल बा।
गश्ती करे से पुलिस कहाँ भागल बा।।
जब तक गाँव शहर में कौनों मर्डर ना होई।
विपक्ष कवन मुद्दा देखा के सरकार पर करी चढ़ाई।।
एतना पुलिस भर्ती कइसे हो पइहें।
पेट फुला करके खाली सुतल रही हें।।
कोर्ट कचहरी सब बंद हो जाई।
केहू के लइका वकील ना बने पाई।।
सब केहू जब बेगुनाह बन जाई।
ऐतना सब जेल कवना काम आई।।
सब काम अपना सिस्टम में चलत बा।
कानून व्यवस्था हर रोज नया बनत बा।।
इ सब ना होत रही , त सरकार पंगु हो जाई।
फिर विपक्ष जोर शोर से, कर दी चढ़ाई।।
रउआ सब बताईं,का नया सरकार रोज बनत रही।
लोग भी मरत रही, कानून व्यवस्था भी अइसहीं चलत रही।।
कारवाई करे खातिर, पहिले सीमा खोजाई।
सब थाना के पुलिस, पहिले एही में उलझ जाई।।
एकरे नाम प्रजातंत्र ह, आ इहे सरकारी सिस्टम ह ऽ।
कानून त अपना जगह पर बा, व्यवस्था में इहे कमी ह ऽ।।
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