जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना,19 जुलाई ::
सनातन धर्म की विशेषता रही है कि प्रत्येक देवता की अपनी विशिष्ट भूमिका होता है। कोई संहारक है, कोई पालनकर्ता, कोई रक्षक है, तो कोई दाता। लेकिन एक देवता ऐसे भी हैं, जिनमें श्रद्धा और भय का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है, वह देव हैं न्याय के प्रतीक शनिदेव। शनिदेव को 'दंडाधिकारी' कहा गया है, और सनातन धर्म में यह दृढ़ विश्वास है कि वह जीवों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। चाहे वह राजा हो या रंक, धर्मात्मा हो या पापी, शनिदेव सबको समान दृष्टि से देखते हैं।
शनि ग्रह को नवग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है। इसी कारण से इसे 'मंदगामी' भी कहा जाता है। व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों, परीक्षा की घड़ियों और आत्मविश्लेषण की प्रेरणा शनिदेव की कृपा से ही मिलता है। ऐसा माना जाता है कि शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या किसी भी व्यक्ति के जीवन की परीक्षा की सबसे महत्वपूर्ण घड़ी होता है। यह कालखंड इंसान को या तो निखार देता है या फिर बिखेर देता है। लेकिन यह सर्वमान्य है कि जो इस काल में धैर्य, मेहनत और सत्य के साथ चलता है, शनिदेव उसकी झोली खुशी से भर देते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में शनिदेव के अनेक प्रसंग हैं। एक कथा के अनुसार, शनिदेव, भगवान सूर्य के पुत्र हैं, और उनकी माता छाया हैं। जन्म के समय ही उनकी दृष्टि से सूर्यदेव तक संतप्त हो गए थे, जिससे यह विश्वास बना कि शनिदेव की दृष्टि अत्यंत प्रभावशाली है। पर इसका यह आशय नहीं है कि शनिदेव कोई अभिशाप हैं। वास्तव में शनिदेव दण्ड नहीं देते हैं, वह सिर्फ कर्मों का प्रतिफल प्रदान करते हैं।
शनिदेव के विषय में यह मान्यता है कि उनकी दृष्टि यदि किसी पर सीधे पड़ जाए तो वह व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कष्टों से गुजर सकता है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि यदि शनिदेव किसी पर प्रसन्न हो जाएं, तो उसे राजा से भी बढ़कर बना सकते हैं। यही कारण है कि शनिदेव की पूजा में विशिष्ट नियमों का पालन आवश्यक है। पूजा के दौरान सीधे शनिदेव के नेत्रों में न देखकर उनके चरणों में दृष्टि रखने की परंपरा है। यह विनम्रता और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
शनिवार को विशेष रूप से शनिदेव का पूजा किया जाता है। इस दिन व्रत रखने, पीपल के पेड़ की पूजा करने, सरसों के तेल का दीपक जलाने और काले तिल, लोहा और तेल का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
हनुमान जी की पूजा भी शनिदेव को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय माना गया है। इसके पीछे पौराणिक प्रसंग है कि जब शनिदेव लंका में हनुमान जी के द्वारा बंदी बना लिए गए थे, तब उन्होंने हनुमान जी से मुक्त करने का प्रार्थना किया था। हनुमान जी ने उन्हें छोड़ने से पहले शनिदेव से यह वचन लिया था कि वह उनके भक्तों को कष्ट नहीं देंगे। तभी से यह मान्यता बना कि जो भी भक्त हनुमान जी का पूजा करता है, शनिदेव उस पर कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।
शनिदेव का स्वरूप भी प्रतीकात्मक है। शनिदेव काला वस्त्र पहनते हैं, उनका वाहन काला कौआ या भैंसा होता है, और उनके हाथ में धनुष, त्रिशूल या गदा होता है। यह रूप उनके गंभीर, अनुशासनप्रिय और दंडाधिकारी स्वभाव को दर्शाता है। शनिदेव का यह रूप चेतावनी है कि व्यक्ति को सदा अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। वह व्यक्ति को आलस्य, लोभ, क्रोध, अहंकार जैसे दुर्गुणों से मुक्त करने के लिए कठिन परिस्थितियों में डालते हैं। इस दृष्टि से वे आत्मविकास के देवता हैं।
धार्मिक मान्यता है कि घर के मंदिर में शनिदेव की मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि इसके पीछे यह धारणा है कि शनिदेव की मूर्ति की नियमित पूजा और नियमों के अनुसार देखभाल न होने से उनकी दृष्टि अशुभ फल दे सकता है। आमतौर पर शनिदेव की पूजा मंदिरों में ही किया जाता है, जैसे कि शनिशिंगणापुर (महाराष्ट्र), कोकिलवन (उत्तर प्रदेश), चित्रकूट (मध्यप्रदेश), तेलंगाना के शनिश्वर मंदिर आदि। इन मंदिरों में शनिदेव के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु शनिवार के दिन विशेष रूप से पहुंचते हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को कर्मफलदाता ग्रह माना गया है। यदि कुंडली में शनि शुभ स्थान पर हो तो व्यक्ति को न्यायप्रिय, ईमानदार, और साहसी बनाता है। वहीं अशुभ स्थिति में यह रोग, शत्रु, विपत्ति, कारावास, अवसाद और विघ्नों का कारण बनता है। इसी कारण से शनि दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के समय विशेष उपाय करने की परंपरा रही है। शनि की पूजा व्यक्ति के जीवन को अनुशासित बनाता है और उसे आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है।
शनि की दृष्टि को लेकर जितना भय रहता है, उतना ही गूढ़ सत्य भी है। वास्तव में शनि न तो कोई दंडाधिकारी हैं, न ही कोई श्राप के प्रतीक, बल्कि वह आत्मा के दर्पण है। वह यह दिखाते हैं कि व्यक्ति का जीवन उसकी अपनी प्रवृत्तियों और कर्मों से बनता और बिगड़ता है। एक प्रकार से शनिदेव ब्रह्मांड के कर्म नियम के जीवंत उदाहरण हैं। वह व्यक्ति को उसके ही कर्मों का उत्तरदायित्व सौंपते हैं।
यह भी मान्यता है कि शनिदेव व्यक्ति को कभी उसके कर्मों से अधिक न दुख देते हैं, न सुख। यदि कोई व्यक्ति जीवन में बार-बार कष्ट भोग रहा है, तो उसे अपने कर्मों की ओर झांकना चाहिए। क्या वह सत्य बोलता है? क्या वह अपने माता-पिता की सेवा करता है? क्या वह परोपकार करता है या केवल स्वार्थ में लिप्त है? शनि यही प्रश्न पूछते हैं और उत्तर के अनुसार फल देते हैं। इसलिए शनि से डरने का नहीं है, सम्मान और आत्ममंथन का विषय है।
दैनिक जीवन में यदि व्यक्ति शनिदेव की कृपा प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने कर्मों को सुधारना होगा। सत्य, अहिंसा, संयम, सेवा, और श्रमशीलता ही शनिदेव को प्रसन्न करने के वास्तविक उपाय हैं। काले वस्त्र पहनना, शनिवार को व्रत रखना, तेल चढ़ाना, हनुमान चालीसा का पाठ करना यह सब प्रतीकात्मक साधन हैं। असली साधना होता है, अच्छे विचार, सदाचरण और ईमानदारी।
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में जहां लोग सफलता की सीढ़ियां छल-कपट और अनैतिकता से चढ़ना चाहते हैं, वहां शनिदेव की उपस्थिति एक चेतावनी है कि कोई देख रहा है। आप भले ही दुनिया को धोखा दे दें, लेकिन अपने कर्मों से नहीं बच सकते हैं। शनिदेव के न्याय की तलवार अचूक है। यही कारण है कि कई बार बड़े-बड़े घोटालेबाज, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी जब अचानक पतन की ओर जाते हैं, तो समाज इसे शनिदेव का न्याय कहता है।
शनिदेव के प्रति भक्ति केवल भय पर आधारित नहीं है, बल्कि गहन श्रद्धा पर आधारित है। भक्त मानते हैं कि यदि वे सच्चे हृदय से प्रायश्चित करें, तो शनिदेव उन्हें क्षमा कर सकते हैं। अनेक कथाएं मिलती हैं जब शनि की दृष्टि से पीड़ित व्यक्ति ने कठिन तप, सेवा और भक्ति से शनि को प्रसन्न कर लिया और जीवन में पुनः सुख-संपत्ति प्राप्त की।
भारत के कोने-कोने में शनिदेव को लेकर अनगिनत लोककथाएं प्रचलित हैं। जैसे—शनिशिंगणापुर का मंदिर जहां किसी भी घर में दरवाजा नहीं हैं, और लोग विश्वास करते हैं कि वहां चोरी नहीं होती है क्योंकि शनिदेव स्वयं रक्षक हैं। या फिर कोकिलवन जहां शनिदेव का रूप अत्यंत शांत है और भक्त उनसे सुख की याचना करते हैं।
इस प्रकार शनिदेव केवल दंड नहीं देते हैं, वे जीवन में अनुशासन, आत्मनियंत्रण और ईमानदारी की प्रेरणा देते हैं। वे हमें यह समझाते हैं कि जीवन कोई लॉटरी नहीं है, बल्कि एक तपश्चर्या है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं, हर सफलता के पीछे तप, त्याग और सच्चाई होता है। शनिदेव इसी तप और सच्चाई के प्रहरी हैं।
शनि से डरने का नहीं है, उन्हें समझने की आवश्यकता है। शनिदेव जीवन में वह मार्ग दिखाते हैं जो सत्य, धर्म और न्याय पर आधारित हो। उनके प्रति श्रद्धा, नियमबद्धता और निष्कलंक आचरण ही उनका आशीर्वाद पाने की कुंजी है। शनिदेव कहते है- "जो जैसा करेगा, वैसा ही पाएगा।" और यही सनातन सत्य है। शनिदेव का मंत्र है- “ॐ शं शनैश्चराय नमः”।
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