आज फिर वही हुआ
ज्योतींद्र मिश्रआज फिर वही हुआ
फिर लौट गए बादल
वृक्षों , लताओं की उमगती आकांक्षाएं
धरी की धरी रह गई
अपने हरापन को नहीं कर सकी
अभिव्यक्त /
मिट रही है बादलों को अपना समझने की
जन भावना
ताकने लगे हैं आसमान
वे हल चलाते लोग
कौन हांक रहा है इन बादलों को
कौन है इनका सूत्रधार ?
कौन है वो निर्लज्ज सूरमा
जो उलीच रहा है अंधकार/
अपनी कोख में बीज समेटे हुए
उकता रही है धरती /
ऐसे तो अपना सगा भी नहीं छोड़ता
जैसे ये बादल छोड़ रहे है
धरती को /
सागर से सरोवर तक भौंचक हैं!
#ज्योतींद्र मिश्र
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