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जिनका यह भुजंग आभूषण ,

जिनका यह भुजंग आभूषण ,

हार बना विषधर विषैला नाग ।
जिनका कंठ विष से है नीला ,
नीलकंठ हुआ जिसका दाग ।।
बाबा भोले के गण हैं विषधर ,
विष पीनेवाले हैं बाबा भोले ।
उनपे विष का असर का होगा ,
जिनके भोजन धतूरे भांग गोले ।।
स्वयं पीते जो जहर ही जहर हैं ,
भक्तों के करते सदा उपकार ।
दौड़े जाते भोले शीघ्र वहाॅं पर ,
जहाॅं भक्त करे उनको पुकार ।।
भुजंगभूषण से जो सुशोभित ,
भुजंग ही जिनका हार मिला ।
स्वयं रहते जो नशे में ही मस्त ,
हर भक्तों का है हृदय खिला ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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