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शूलपाणि

शूलपाणि

शिव बिन हम शव बने ,
शंकर बिन है शं कहाॅं !
शं बिन यह भू भी नहीं ,
शंभू बिन यह हं कहाॅं !!
जो कहलाता शूलपाणि ,
दुष्टों हेतु उनका शूल है ।
भक्त रक्षक हेतु ये पाणि ,
भक्त कल्याण मूल है ।।
शिव शंकर शंभू भोले ,
कहलाते भोले भण्डारी ।
शिवशंकर सावन प्रिय ,
काॅंवर लिए शिव पुजारी ।।
शिवकृपा से सावन प्रिय ,
कृपा से काॅंवर ले धावन ।
कृपा बिन बारिश नहीं ,
सावन माह बहुत पावन ।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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