रक्षाबन्धन-विमर्श
✍️ मार्कण्डेय शारदेय
इस वर्ष रक्षाबन्धन का पर्व 09 अगस्त (शनिवार) को मनाया जाएगा। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम, विश्वास, रक्षा और स्नेह का प्रतीक है, जो हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। लेकिन इस बार की तिथि को लेकर कुछ ज्योतिषीय शंकाएं एवं शास्त्रों के विवेचन सामने आ रहे हैं, जिससे पर्व मनाने का उपयुक्त मुहूर्त विषय बन गया है।
🔹 पूर्णिमा और भाद्रपद का संधिकाल
09 अगस्त को पूर्णिमा तिथि दोपहर 1:36 बजे तक ही है। उसके बाद भाद्रपद मास की प्रतिपदा प्रारंभ हो जाएगी। ऐसे में एक सामान्य शंका यह उठती है कि यदि कोई बहन अपने भाई को राखी दोपहर 1:36 बजे के बाद बांधती है, तो क्या वह उचित और शास्त्रोक्त होगा?
🔹 भद्रा दोष की अनुपस्थिति
सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस दिन भद्रा नहीं है, अतः भद्रा दोष का कोई प्रभाव इस रक्षाबंधन पर नहीं पड़ेगा। भद्रा दोष वह काल होता है जिसमें कोई भी शुभ कार्य वर्जित माना गया है, विशेष रूप से रक्षाबन्धन जैसा पर्व, क्योंकि इसका सम्बन्ध मंगल, रक्षा और सौहार्द्र से है।
🔹 'निर्णयसिन्धु' का दृष्टिकोण
'निर्णयसिन्धु' जैसे शास्त्रीय ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“इदं प्रतिपद्युतायां न कर्तव्यम्”
अर्थात्, रक्षाबन्धन प्रतिपदा के योग में वर्जित है।
इसका अभिप्राय यह है कि यदि पूर्णिमा तिथि के साथ प्रतिपदा तिथि का संयोग हो रहा हो (जैसे कि इस बार दोपहर 1:36 के बाद हो रहा है), तो रक्षाबन्धन नहीं करना चाहिए। यह एक कड़ा मत है और धार्मिक नियमों के प्रति दृढ़ संकल्प की मांग करता है।
🔹 'धर्मसिन्धु' एवं 'कृत्यसार-समुच्चय' की मौनता
दूसरी ओर, ‘धर्मसिन्धु’, जो कि हिन्दू कर्मकाण्ड का एक प्रमुख एवं प्रामाणिक ग्रंथ है, तथा ‘कृत्यसार-समुच्चय’ जैसे अन्य शास्त्र, इस विषय पर कोई स्पष्ट निषेध नहीं प्रस्तुत करते हैं। वे इस योग को रक्षाबन्धन के लिए बाधक नहीं मानते, अर्थात् उनके अनुसार यदि पूर्णिमा दोपहर 1:36 बजे तक है, तो उसके बाद भी राखी बाँधना अनुचित नहीं है।
🔹 लोकाचार और व्यावहारिकता का संतुलन
ऐसी स्थिति में जब एक शास्त्र वर्जना करता है और दूसरे मौन रहते हैं, तो हमें लोकाचार (सामाजिक परंपरा), प्रसिद्ध आचरण, और व्यावहारिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा। कई बार शास्त्रों के निर्देशों का पालन करना लोक व्यवहार में संभव नहीं होता, विशेषतः जब वह स्पष्ट रूप से निषिद्ध न हो।
🔹 तो फिर राखी कब बाँधी जाए?
इस विश्लेषण के बाद निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है:
09 अगस्त को पूर्णिमा तिथि दोपहर 1:36 बजे तक है।
भद्रा दोष नहीं है।
यदि बहनें सुबह से दोपहर 1:36 बजे तक राखी नहीं बाँध पाएं, तो उसके बाद भी बाँध सकती हैं।
'निर्णयसिन्धु' की मान्यता को स्वीकार करने वालों को प्रयास करना चाहिए कि वे दोपहर 1:36 बजे के पूर्व ही राखी बाँध लें।
परंतु 'धर्मसिन्धु' एवं 'कृत्यसार-समुच्चय' जैसे प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर देखा जाए तो इस बार दोपहर बाद भी राखी बाँधना शास्त्रसम्मत एवं मान्य है।
🔹 नवीन जीवन दर्शन का संदेश
रक्षाबंधन मात्र एक पर्व नहीं, एक सांस्कृतिक दायित्व है। यह पर्व यह भी सिखाता है कि प्रेम, कर्तव्य और रक्षा का संकल्प किसी काल की सीमा का मोहताज नहीं होता। शुद्ध भावना, आत्मीयता और आदरपूर्वक किया गया कर्म सदैव पुण्यदायक होता है।
अतः इस बार यदि कुछ कारणवश आप दोपहर 1:36 के पूर्व राखी नहीं बाँध पाएं, तो बाद में भी श्रद्धा और सम्मान के साथ यह कार्य किया जा सकता है। शास्त्रों का आशय भी यही है कि नियम की मर्यादा के साथ भावना की शुद्धता बनी रहे।
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