"महान बनने की पाठशाला भीतर है"
मित्रों उपरोक्त सुविचार एक गहन सत्य को उजागर करता हैं — महानता सिखाई नहीं जाती, अर्जित की जाती है। न कोई पुस्तक, न कोई शिक्षक एवं न ही कोई संस्थान हमें महान बना सकता है, जब तक कि हम स्वयं अपने भीतर की चेतना को नहीं जगाते।
कर्म हमारे जीवन की पहचान है। निःस्वार्थ सेवा, परिश्रम एवं ईमानदारी ही वह आधार हैं जिन पर महानता की नींव रखी जाती है। वहीं, वाणी हमारे चरित्र का दर्पण है — मधुर वाणी, सत्य भाषण एवं समय पर मौन भी लोगों के दिलों को छूने की शक्ति रखते हैं।
व्यवहार एवं आचरण से हमारा सामाजिक व्यक्तित्व गढ़ता है। दूसरों को सम्मान देना, विनम्रता से पेश आना एवं सिद्धांतों पर अडिग रहना — यही वे मूल्य हैं जो किसी व्यक्ति को समाज में आदर दिलाते हैं।
वास्तविक महानता दिखावे या पद से नहीं आती; वह तो भीतर से उदित होती है — साधना, सेवा एवं संयम के मार्ग से।
इसलिए यदि आप जीवन में महान बनना चाहते हैं, तो अपने भीतर झाँकिए, अपने कर्मों को संवारिए, वाणी को शुद्ध कीजिए एवं आचरण को सज्जनता से सिंचित कीजिए। यही जीवन का सच्चा विद्यालय है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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