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कुछ भी करो बचाकर नाक

कुछ भी करो बचाकर नाक

तक्कम ताक तक्कम ताक ,
तक्कम तक्कम तक्कम ताक ।
न इधर ताक न तू उधर ताक ,
चलते पग बिल्कुल सीधे ताक ।।
अगड़म बगड़म न बोल तेरा ,
कोयल बन न बन कभी काक ।
कौए सा नेत्र न बोल बनो तू ,
कोयल सी कूक हो तेरी पाक ।।
काम करो तुम जगाने वाला ,
दुनिया हो जाए देख अवाक ।
दुनिया में चाहे कुछ भी कर ले ,
कुछ भी करो बचाकर नाक ।।
सबका तुम कुछ बनाना सीखो ,
सोचना नहीं करने की खाक ।
ध्यान रहे डगमगाए न कदम ,
दुनिया रही है तुझको ही ताक ।।
भरोसा करें दुनिया में तुम पर ,
दुनिया पर बने ये अपनी धाक ।
विश्वासी बनो तुम दुनिया का ,
इरादा न बनाना कभी नापाक ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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