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पास से दूर को देखो

पास से दूर को देखो

नजरे पास की धूंधलि हो गई।
पर दूर का अच्छा देखती है।
इसलिए पास वालो से ज्यादा
दूर वालों को पढ़ लेती है।।


भरोसा पास वालों पर करते है।
पर दूर वालों से कन्नी काटते है।
जबकि इतिहास गवाह है।
की पास वालों ही लूटते है।।


दूर वाले दिलके करीब होते है।
और सदा दिलसे याद करते है।
पास दूर का फर्क करते हो।
पर खुदको ही नहीं समझते हो।।


बिना चश्मे के दुनिया को देखे हो।
पर जब चश्मा लगते हो तो क्या।
दुनिया को अलग तरह से दिखतो हो।
बस चश्मे से दुनिया रंगीन दिखती है।।


मदद जब भी किसी की करो।
तो खुदको पता नही होना चाहिए।
की हमने क्या कुछ क्यों किया है।
बस करके भूल जाना अच्छा है।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई


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