देखिए परिदृश्य सारे खुल रहे से हैंं।
बादलों के आँसुओं से धुल रहे से हैं।।पर्वतों ने हैं उतारे वे धवल परिधान
फिर पहन ली हैं विविध रंगी अँगरखा जान।
श्याम वर्णी जलद के संवाद में हो मुग्ध
स्नेह भीगे मधुर रस में घुल रहे से हैं।।
फुहारों के मोतिक्षों से तरु सजाए सिर
खड़े है छुपचाप मानो तपिस आए तिर।
और पाखी चोंच खोले नहाकर खोए
लहर सरिता की लहर से मिल रहे से हैं।।
फुस की कृशकाय छानी से टपकता जल
पराजित जीवन अभी भी रह रहाअविकल
प्रकृति तो संवेदना का जाल बुनती है
किन्तु प्रतिबंधित मुखौटे चल रहे से हैं।। 63 ।।
डा रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com