पौराणिक परंपरा से लेकर आधुनिक विज्ञान तक व्यावहारिक है - “बिछिया”
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
भारतीय संस्कृति में गहनों का महत्व केवल सौंदर्यवर्धन तक सीमित नहीं है, बल्कि इनमें आध्यात्मिक, सामाजिक और चिकित्सकीय कारण भी निहित होता है। बिछिया, जिसे आम भाषा में पैर की दूसरी उंगली में पहना जाने वाला चांदी का छल्ला कहा जाता है, भारतीय विवाहित स्त्रियों की पहचान माना जाता है। परंपराओं के स्तर पर यह ‘सुहाग चिन्ह’ का प्रतीक है, तो वहीं विज्ञान इसे स्वास्थ्य से जुड़ी एक चमत्कारी विधि मानता है।
भारत में विवाह के पश्चात स्त्रियों को कुछ विशेष आभूषण पहनना आवश्यक होता है, जैसे सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ी, नथ और बिछिया। इनमें बिछिया का महत्व अलग है क्योंकि यह महिला के पैरों में होता है और समाज में उसके वैवाहिक जीवन की स्थिति को दर्शाता है। उत्तर भारत में इसे 'बिछिया', दक्षिण भारत में 'मेट्टी', महाराष्ट्र में 'वेडिंग टो रिंग' और अन्य क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यह केवल एक आभूषण नहीं है, बल्कि स्त्री के सामाजिक दायित्व और सम्मान का प्रतीक है।
हिन्दू धर्म में बिछिया को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसे पहनने से देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और स्त्री के वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बना रहता है। शास्त्रों के अनुसार, बिछिया स्त्री के भीतर की उर्जा (शक्ति) को जागृत करने में सहायक होती है। कुछ कथाओं के अनुसार, यह स्त्री को पवित्र बनाए रखने और उसकी प्रजनन क्षमता को सुदृढ़ रखने वाला गहना भी माना गया है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, पैर की दूसरी उंगली की नसें सीधे स्त्री के हृदय और गर्भाशय (Uterus) से जुड़ी होती है। जब उस उंगली पर चांदी की बिछिया डाला जाता है, तो वह एक्यूप्रेशर के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसका हल्का दबाव नसों पर प्रभाव डालता है, जिससे रक्त प्रवाह नियमित रहता है और यूट्रस संबंधित समस्याओं में राहत मिलता है।
बिछिया पहनने से महिलाओं के शरीर में प्रजनन हार्मोन (Reproductive Hormones) का स्तर संतुलित रहता है। यह ओवुलेशन साइकल (ovulation cycle) को नियमित करने में मदद करता है। इसी कारण से यह माना जाता है कि बिछिया गर्भधारण की प्रक्रिया को सरल बनाती है।
बिछिया पहनने वाली महिलाएं मासिक धर्म (Menstrual Cycle) के दौरान कम दर्द का अनुभव करती हैं, क्योंकि नसों पर पड़ने वाले दबाव से गर्भाशय क्षेत्र में रक्त संचार बेहतर होता है। यह यूट्रस को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
चांदी एक ठंडी धातु है और इसके संपर्क से शरीर में ठंडक बना रहता है। यह धातु जीवाणुनाशक (Antibacterial) गुणों से भी भरपूर होता है। चांदी के बिछिया पहनने से पैरों में पसीने और संक्रमण की संभावना कम हो जाता है। साथ ही यह ब्लड प्रेशर को स्थिर बनाए रखने में सहायक है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि जो महिलाएं बिछिया पहनती हैं, उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है और वह अपने वैवाहिक जीवन को लेकर अधिक सजग रहती हैं। यह गहना उनके वैवाहिक संबंधों को मानसिक स्तर पर भी सुदृढ़ करता है। इसका पहनना एक तरह की सामाजिक जिम्मेदारी और भावनात्मक जुड़ाव का भी संकेत देता है।
भारतीय इतिहास में बिछिया का जिक्र वैदिक काल से मिलता है। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में महिलाओं के पैर में बिछिया का वर्णन कई स्थानों पर किया गया है। एक कथा के अनुसार, सीता जी ने रावण द्वारा हरण किए जाने के समय अपने आभूषणों को गिराया था, जिनमें बिछिया भी शामिल थी। इसे हनुमान जी ने पहचाना था।
मध्यकालीन भारत में रानी-महारानियों द्वारा बिछिया पहनने की परंपरा बहुत सामान्य थी। मुगल काल के चित्रों में भी महिलाओं के पैरों में बिछिया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
बिछिया केवल विवाहित स्त्रियां पहनती हैं। अविवाहित कन्याएं इसे नहीं पहनतीं। इसे हमेशा दोनों पैरों की दूसरी उंगली में पहना जाता है, ताकि संतुलित दबाव बना रहे। चांदी को चंद्रमा से संबंधित माना जाता है, जो स्त्रीत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए सोने की बजाय चांदी का बिछिया ही पहना जाता है। पूजा, त्योहार, और पारिवारिक आयोजनों में बिछिया पहनना शुभ माना जाता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में बिछिया की शैलियों में भी भिन्नता देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में भारी और नक्काशीदार बिछिया का चलन है, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘पैंजनिया’ भी कहते हैं। राजस्थान में महिलाएं रंग-बिरंगी पायलों के साथ सजी हुई बिछिया पहनती हैं। तमिलनाडु और केरल में (दक्षिण भारत में) ‘मेट्टी’ नाम से जाना जाता है और यह बिछिया बहुधा सरल और गोल होता है। महाराष्ट्र में बिछिया में फूल या पत्तियों की डिजाइन मिलता है और यह हल्का होता है।
विवाह के बाद बिछिया पहनने से स्त्री के वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। माना जाता है कि चांदी की बिछिया बुरी नजर से सुरक्षा प्रदान करती है। भारतीय लोककथाओं के अनुसार, बिछिया नकारात्मक ऊर्जा को पैरों से शरीर में प्रवेश नहीं करने देती है। गर्भावस्था के दौरान बिछिया पहनना विशेष रूप से लाभकारी माना गया है, क्योंकि यह यूट्रस को स्वस्थ बनाए रखता है।
आज भले ही लोग परंपराओं से थोड़ा दूर होते जा रहे हैं, लेकिन बिछिया एक ऐसा आभूषण है जो आज भी अपनी जगह बनाए हुए है। आधुनिक डिजाइनों में उपलब्ध होने के कारण अब इसे सिर्फ रीति-रिवाज का पालन नहीं, बल्कि फैशन स्टेटमेंट भी माना जाने लगा है। कुछ महिलाएं इसे स्टाइल के रूप में भी पहन रही हैं, भले वे विवाहित हों या नहीं।
बिछिया केवल एक गहना नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, स्त्री स्वास्थ्य और वैज्ञानिक अवधारणाओं का सम्मिलन है। यह गहना जहां एक ओर सामाजिक रीति-रिवाजों की पूर्ति करता है, वहीं दूसरी ओर महिला स्वास्थ्य की रक्षा भी करता है।
प्राचीन भारत के ऋषियों ने बिना आधुनिक उपकरणों के भी जो ज्ञान अर्जित किया, वह आज विज्ञान के प्रमाणों से मेल खाता है। बिछिया इसका जीवंत उदाहरण है, एक परंपरा जो सिर्फ सुंदरता नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सौभाग्य और संतुलन का प्रतीक है। ------------
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