बढ़ती उम्र के साथ, शौंक बदल जाते हैं,
चने खाने की ताकत ख़त्म, अंगूर भाते हैं।सजना सँवरना, स्टाइल के प्रति सजगता,
बच्चों को देख, पुराने शौंक याद आते हैं।
बचपन के दौर की वह शैतानियाँ, अब कहाँ,
बाग़ से आम जामुन चुराना खाना, अब कहाँ?
अच्छी लगती वह लड़की, छुप कर देखते थे,
इज़हारे इश्क़ में ख़तों का चलन, अब कहाँ?
संस्कारों के संरक्षक, बढ़ती उम्र में हो जाते हैं,
जवानी के छिछोरे, बुढ़ापे में पुलिस हो जाते हैं।
रोज खाते थे चाट पकौड़ी, होटल में खाने वाले,
लौकी तौरी की सब्ज़ी, खिचड़ी उत्तम कह जाते हैं।
था नौकरी का दंभ बहुत, धन दौलत पर इतराते थे,
रिश्ते नातों की कद्र नहीं, अकड़ अकड़ बतलाते थे।
छूटे ख़ाली कारतूस के जैसे, अब कोने में पड़े हुये हैं,
अब दरवाजे नज़र उन्हीं पर, जिनसे नज़र चुराते थे ।
डिस्कों में जाकर थिरकें, अंग्रेज़ी धुन पर डांस करें,
उम्र बढ़ी तो कथा भागवत, राम भजन श्रेष्ठ बताते हैं।
सुख दुःख में शामिल नही हुये, व्यर्थ बात बताने वाले,
तन्हा होता देख स्वयं को, सामाजिक महत्व बताते हैं।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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