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“शिव का प्रिय सावन मास“

“शिव का प्रिय सावन मास“

 राजीव रंजन मिश्र “राजू”
शिव परोपकारी हैं, परमानन्द हैं। शिव भगवंत हैं, ओंकार हैं। शिव ब्रह्म हैं, शिव धर्म हैं, शिव शक्ति हैं, शिव भक्ति हैं। जहाँ धर्म है वहाँ शिव हैं। शिव लिंग भगवान शिव का निराकार और साकार प्रकृति को दर्शाता है। शिव के साधक को मृत्यु, रोग और शोक का भय नहीं होता। यजुर्वेद में शिव को शक्ति दाता बताया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिये क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शिव का नाम है) नामक तीन सुक्ष्म देवताओं की रचना की है। इसी लिये शिव ब्रह्माण्ड के रचयिता हुये। शिव को इसीलिये देवों के देव महादेव कहा जाता है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में होती है। भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र हैं, उतना ही आकर्षक भी हैं। उनकी जटायें अंतरिक्ष व चंद्रमा मन का प्रतीक है। इनकी तीन आँखें हैं, इसलिये इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। ये आँखें सत्व, रज और तम (तीन गुणों) भूत, वर्तमान और भविष्य (तीन कालों) स्वर्ग, मृत्यु पाताल (तीन कालांे) का प्रतीक है। सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। इनका त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक तापों को नष्ट करता है। जब की डमरू का नाद ब्रह्म स्परूप है। शिव के गले मंे मुंडमाला मृत्यु को वश में करने का संदेश देती है। महोदेव चार पैर वाले जानवर की सवारी करके संदेश देते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से मिलते हैं। पापों से मुक्त करती है भगवान शिव की आराधना। सच्चे शिव के भक्त वहीं हैं जो अपने मन में स्वार्थ की भावना को त्यागकर परोपकार की मनोवृति अपनाते हैं। भगवान शिव की आराधना, साधना और उपासना से मनुष्य अपने पापों एवं संतापों से इसी जन्म में मुक्ति पा सकता है। मुक्ति की अभिलाषा के लिये हमारे धर्म शास्त्रों में “महामृत्युंजय मंत्र” को सबसे उपयुक्त बताया गया है। जिसे “त्रयंबकम मंत्र” भी कहा गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष हिन्दु धर्म का सबसे व्यापक मंत्र है।

“श्री मृत्युंजय महादेव मंदिर” कनखल के श्री हरिहर आश्रम में हैं। आश्रम प्रांगण मंे ही पारे (मर्करी) का शिवलिंग भी है। यहीं पर सिद्धदाता “रूद्राक्ष” वृक्ष भी है। महामृत्यंुजय अष्ट भुजाओं वाले हैं।ै जिनके दो हाथों में अमृत कलश, चार हाथों में स्नान के जल कलश, एक हाथ मंे रूद्राक्ष माला, तथा दुसरे हाथ में ज्ञान मुद्रा है।

शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है कल्याणकारी” शिव के नाम का उच्चारण करने से ही सुखों का निवारण हो जाता है, शिव स्वयंसिद्ध एवं स्वयं प्रकाशी हैं, वे स्वयं प्रकाशित रहकर स्म्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करते हैं, शिव जी में पवित्रता, ज्ञान और साधना के गुण विधमान हैं। इसलिये उन्हेे देवों के देव “महादेव” कहते हैं। शिव सहजता से प्रसन्न होने वाले देवता हैं इसलिए इन्हें आशुतोष भी कहते हैं। शिव मृत्यु के देवता हैं, इसलिए इन्हें मृत्युंजय भी कहते हैं। काल्याणकारी होने के साथ शिव संहार के भी देवता हैं। भगवान शिव मोक्षदायिनी माँ गंगा को अपनी जटाओं में धारण किये हुये हैं। सिर पर चन्द्रमा धारण कर वह शीतलता का प्रतिक हैं। सर्प की माला, सिंह की खाल का आसन और नंदी की सवारी अर्थात जो अहितकारी है, उस पर शिव का नियंत्रण है। शिव परिवार में भिन्न विचार के लोग होने पर भी एकता है। शिव, माँ पार्वती, गणेश कार्तीकेय, सिंह, नंदी मोर, चूहा, इन चारों की सवारी, फिर भी परिवर में सभी साथ-साथ मिल कर करते हैं। शिव भक्तों का कल्याण करते हैं तो मृत्यु प्रदाता भी हैं। शिव प्रकृति संतुलन के देवता हैं। यही कारण है कि श्रावण मास में उनकी स्तुति होती है श्रवण मास में प्रकृति नए स्वरूप में होती है चारों ओर हरियाली ही हरियाली होती है। इससे मानव को आंतरिक सुख प्राप्त होता है। शिव की लीलाएं अनंत हैं।

शिव भक्त शिव लिंग की पूजा गंगा जल, पंचामृत, चन्दन, भस्म, अक्षत, बेलपत्र, फूल, फल, धतुरा, भांग और ईत्र आदि से करते हैं। इसके बाद रूद्राष्टक, लिंगाष्टक, शिव तांडव, शिव पंचाक्षर मंत्र का पाठ, महा मृत्युंजय मंत्र का जाप, ओम नम् शिवाय, हर-हर महादेव का जयकारे लगातें हैं।

सावन मास में रूद्राभिषेक का महत्व बहुत ज्यादा है, हरेक माह में रूद्राभिषेक के लिए शिव वास देखने की जरूरत होती है किन्तु सावन मास में पुरे मास शिव जी का रूद्राभिषेक फल दायी है, देवाधिदेव शिव से अपनाएं त्याग और समर्पण की भावना। शिव जी स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, विश्व चेतना है और ब्रह्माण्डिय अस्तित्व का आधार हैं। शिव जहाॅ रहते हैं उस स्थान को सिद्ध और व्यक्ति को प्रसिद्ध कर देते हैं। भक्त में अगर त्याग, समर्पण, सच्चाई और सदाचार है तो वह शिव का स्वतः पात्र बन जाता है। जहाँ शिव होते हैं वह अनंत इच्छाओं की स्वतः पूर्ति होती है। अगर जीवन को सत्यम शिवम सुन्दरम बनाना चाहते हैं तो जगदगुरू शिव के सानिध्य में बैठें। उनकी उपासना करंे, उनके स्वरूपप को जानें और गुणों को आत्मसात करंे। सावन मास में हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम शिव जैसा ही बनेंगे। सावन मास में शिव की पूजा शुभ मानी जाती है। सोमवार के स्वामी भगवान शिव हैं, इसलिए सावन माह के सोमवार को शिव की पूजा करने से शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। 
लेखक राजीव रंजन मिश्र“राजू”
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