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स्त्री प्रकृति की महारानी

स्त्री प्रकृति की महारानी

मनुज सौभाग्य उदयन,
मंगलता घर द्वार प्रवेश ।
सुख समृद्धि वैभव सेतु,
हर्षित पुलकित परिवेश ।
मृदुल मधुर पावन सरिता,
सदा अनंत आनंद जगानी ।
स्त्री प्रकृति की महारानी ।।

सृजन दिव्य अठखेलियां,
कुल वंश परिवार वंदन ।
धर्म कर्म परम शोभना,
मर्यादा सुसंस्कार मंडन ।
शिक्षा खेलकूद ओज भर,
नित्य नव कीर्तिमान रचानी ।
स्त्री प्रकृति की महारानी ।।

रग रग दर्श शाश्वतता,
शक्ति भक्ति अनन्य बिंदु ।
आत्म विश्वास मैत्री बंधन,
संघर्ष पथ विजयी सिंधु ।
विकास ओर हर कदम,
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व दुर्रानी ।
स्त्री प्रकृति की महारानी ।।

देहरी प्रांगण अति शोभित,
कुटुंब समाज राष्ट्र रत्न ।
अंतर्मन खुशियां निर्झर,
सफलता हित घोर प्रयत्न ।
अधिकार संचेतना माध्य,
देश धरा प्रगति स्वप्न सजानी ।
स्त्री प्रकृति की महारानी ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना )
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