भारत में कागजी मुद्रा का रोमांचक इतिहास
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से
रुपया भारत की अर्थव्यवस्था की धड़कन है, पर इसकी कहानी केवल मुद्रा की नहीं, बल्कि इतिहास, राजनीति, औपनिवेशिक शासन, आज़ादी और विकास की भी है। "रुपया" शब्द संस्कृत के "रूप्यकम्" से आया है, जिसका अर्थ होता है – चाँदी का सिक्का। यह नाम भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे देशों में भी मुद्रा के रूप में अपनाया गया है।
सूत्रों के अनुसार, भारत में मुद्रा के उपयोग का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। वैदिक काल में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी, लेकिन मौर्य साम्राज्य (ईसा पूर्व 4वीं शताब्दी) में चाँदी, तांबे और सोने के सिक्कों का चलन शुरू हुआ था। इन सिक्कों पर राजा के नाम या प्रतीक चिह्न की मुहर हुआ करता था।
गुप्तकाल (319-550 ई.) में सोने के सिक्कों को विशेष महत्त्व मिला था। इन्हें "दीनार" कहा जाता था। दक्षिण भारत में चोल, पांड्य, चेर, और विजयनगर साम्राज्य के समय में भी विभिन्न प्रकार के धातु सिक्के चलन में था।
दिल्ली सल्तनत और मुग़ल काल में, भारत में मुद्रा प्रणाली को एक नया रूप दिया गया। मुगल सम्राट अकबर ने "दीनार", "रूपया" और "द्रम" जैसे सिक्के जारी किया गया था। शेर शाह सूरी (1540-1545) को आधुनिक भारतीय मुद्रा प्रणाली का जनक माना जाता है, जिसने 178 ग्रेन (11.5 ग्राम) चाँदी का एक रुपया चलन में लाया था। यह "रुपया" नाम की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति थी।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में 18वीं सदी में आर्थिक नियंत्रण स्थापित किया था। आरंभ में तीन प्रमुख प्रेसिडेंसी बैंक - बैंक ऑफ बंगाल, बॉम्बे और मद्रास ने अपने क्षेत्र में बैंक नोट छापा। परंतु इनमें एकरूपता नहीं थी। 1861 ब्रिटिश सरकार ने भारत में मुद्रा प्रणाली को केंद्रीकृत करने के लिए "पेपर करेंसी एक्ट" पारित किया। इसके तहत भारत सरकार को पूरे देश में नोट छापने का विशेषाधिकार मिल गया। 1862 में पहली बार कागजी नोट छापा गया था, जिन पर ब्रिटिश सम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया की तस्वीर थी। यह नोट सुरक्षा के लिहाज से साधारण था और हाथ से छपता था।
1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना हुई थी। पहले यह एक निजी संस्था थी, जिसे भारत सरकार ने 1949 में राष्ट्रीयकृत किया था। भारतीय रिजर्व बैंक को देश में नोट छापने का एकमात्र अधिकार मिला था। भारतीय रिजर्व बैंक ने 1938 में 2, 5, 10, 50, 100, 1000 और 10,000 रुपए के नोट जारी किया था। इन नोटों पर तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज VI की तस्वीर हुआ करता था। 1917 में 2.5 रुपए का अनोखा नोट भी छापा गया था, जो 1926 में हटा लिया गया था।
स्वतंत्रता के बाद भारत ने विदेशी सम्राटों के चित्रों को हटाकर राष्ट्रीय प्रतीकों को अपनाया। 1949 में अशोक स्तंभ वाला पहला नोट जारी किया गया था। यह आजादी के प्रतीक के रूप में देखा गया था। 1959 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 5,000 और 10,000 रुपए के नोट जारी किया था। यह विशेष रूप से बैंकों और सरकारी लेन-देन के लिए बनाया गया था।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार ने 1978 में बड़ा कदम उठाते हुए 1,000, 5,000 और 10,000 रुपए के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया था। इसका मकसद था, काले धन और अवैध आर्थिक गतिविधियों पर लगाम लगाना। यह भारत में पहली "नोटबंदी" थी।
1987 में ₹500 का नोट लाया गया, जिस पर तत्कालीन भारतीय विरासत जैसे किला, स्मारक आदि के चित्र होते थे। इसके बाद 2000 में ₹1000 का नोट फिर से लागू किया गया था। 1996 में महात्मा गांधी श्रृंखला की शुरुआत हुई। इसमें नोटों पर पहली बार महात्मा गांधी का चित्र प्रमुखता से दिखा। यह श्रृंखला सुरक्षा, पहचान और डिज़ाइन के स्तर पर बहुत उन्नत थी।
8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए घोषणा की कि रात 12 बजे से ₹500 और ₹1000 के नोट अवैध हो जाएंगे। यह दूसरी नोटबंदी थी, और इसका उद्देश्य था – काला धन, आतंकवाद की फंडिंग, और नकली नोटों पर रोक लगाना।
इसके स्थान पर नए ₹500 और ₹2000 के नोट लाए गए। ये महात्मा गांधी (नई श्रृंखला) में जारी किए गए थे। इसमें उन्नत सुरक्षा फीचर, माइक्रो- प्रिंटिंग, ब्लीड-प्रूफ इंक, और ब्रेल चिन्ह शामिल था।
भारतीय रिजर्व बैंक ने महात्मा गांधी (नई श्रृंखला) के तहत ₹10, ₹20, ₹50, ₹100, ₹200, ₹500 और ₹2000 के नए नोट जारी किए। प्रत्येक नोट पर भारत की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाले स्मारकों या चित्रों को दर्शाया गया था। ₹10 पर कोणार्क सूर्य मंदिर, ₹20 पर एलोरा की गुफाएँ, ₹50 पर हम्पी का रथ, ₹100 पर रानी की वाव, ₹200 पर सांची स्तूप, ₹500 पर लाल किला और ₹2000 पर मंगलयान (अब धीरे-धीरे वापस लिया जा रहा है)।
आज के भारत में पेपर करेंसी के साथ-साथ डिजिटल पेमेंट सिस्टम का भी व्यापक विस्तार हुआ है। UPI, PhonePe, Google Pay और अन्य प्लेटफ़ॉर्म्स ने कागज़ी मुद्रा की निर्भरता को कम कर दिया है।
2022 में डिजिटल रुपया (CBDC) की शुरुआत हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में डिजिटल रुपया – Central Bank Digital Currency (CBDC) शुरू किया है, जिससे भविष्य में नकद पर निर्भरता कम होने की संभावना है।
भारतीय करेंसी केवल लेन-देन का माध्यम नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक आत्मनिर्भरता, और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। कागजी मुद्रा के माध्यम से भारत ने आर्थिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया है, भ्रष्टाचार और काले धन पर नियंत्रण के प्रयास किए हैं, और अब डिजिटल इंडिया के तहत भविष्य की ओर बढ़ रहा है। --------------हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
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