सनातन धर्म का मूल सिद्धांत है - “कर्म ही धर्म है” - शनि देव इस सिद्धांत के संरक्षक हैं

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से
सनातन धर्म में प्रत्येक देवता का एक विशेष महत्व होता है। जहां एक ओर भगवान विष्णु पालनकर्ता हैं, ब्रह्मा सृष्टिकर्ता और शिव संहारक, वहीं शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है। शनि देव का कार्य मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उन्हें फल देना है- चाहे वह शुभ हो या अशुभ। यही कारण है कि शनिदेव की महिमा और उनका भय दोनों ही साथ साथ चलता हैं।
अधिकांश सनातन घरों में छोटे-छोटे मंदिर होते हैं जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित होता हैं। राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गणेशजी, राम-सीता, दुर्गा माता और लक्ष्मी जी की प्रतिमाएं आमतौर पर देखा जाता हैं। लेकिन शनि देव, कालरात्रि और बाबा भैरवनाथ की मूर्तियाँ प्रायः घर के मंदिरों में नहीं होता है। इसके पीछे पौराणिक कारण है। कहा जाता है कि शनिदेव को यह श्राप प्राप्त है कि उनकी दृष्टि जहाँ भी पड़ती है, वहाँ कष्ट, विघ्न और पीड़ा उत्पन्न हो जाता है। इस कारण से लोग उन्हें अपने घर के पूजा स्थान में नहीं रखते हैं। उनका दर्शन भी विशेष सावधानी के साथ किया जाता है।
शनिदेव की पूजा करते समय यह विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि उनकी आंखों में आंखें डालकर दर्शन न करें। मान्यता है कि उनकी तीव्र दृष्टि का प्रभाव नकारात्मक हो सकता है। इसीलिए पूजा करते समय उनके चरणों की ओर देखना चाहिए। शनिवार के दिन विशेषकर यह नियम पालन किया जाता है। पीपल के वृक्ष के नीचे दीप जलाना, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना, तथा उस तेल को बाद में गरीबों में दान करना। यह सब शनिदेव को प्रसन्न करने की पद्धतियाँ है।
शनिवार को शनि देव का वार माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से व्रत, पूजा और सेवा के कार्य किए जाते हैं। एक विशेष मान्यता यह भी है कि हनुमान जी की भक्ति करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। रामायण की कथा के अनुसार, जब रावण ने शनिदेव को बंदी बना लिया था, तब हनुमान जी ने उन्हें मुक्त किया था। तभी से शनिदेव ने यह वचन दिया था कि जो भी हनुमान जी की भक्ति करेगा, उस पर उनका अशुभ प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शनिदेव की सबसे विशेष बात यह है कि वे केवल कर्म के अनुसार फल देते हैं। न किसी से राग, न द्वेष बल्कि सिर्फ निष्पक्ष न्याय करते हैं । सच्चे भक्त को पुरस्कृत करते हैं। दुष्कर्म करने वाले को दंडित करते हैं। धैर्य रखने वालों की परीक्षा लेते हैं। लेकिन अंततः उन्हें सफलता जरूर मिलती है। इस कारण शनिदेव को “कर्मफलदाता” कहा गया है। वे मनुष्य के जीवन में अनुशासन, न्याय और विवेक के प्रतीक हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या कालखंड विशेष रूप से चर्चित होता हैं। जब शनि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा से 12वें, पहले और दूसरे भाव में आता है, तो यह सात वर्षों का समय ‘साढ़ेसाती’ कहलाता है। इसी प्रकार, जब वह चंद्रमा से चौथे या आठवें भाव में आता है, तो ढाई वर्षों का काल ‘ढैय्या’ कहलाता है। इन समयों को जीवन की परीक्षा का काल कहा जाता है, लेकिन यह पूरी तरह से नकारात्मक नहीं होता है। यदि व्यक्ति ईमानदारी, परिश्रम और सच्चाई से चलता है, तो यह काल उसका भाग्य भी बदल सकता है।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को व्रत रखना चाहिए और पीपल वृक्ष की पूजा करना चाहिए। सुबह स्नान करके सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। काला वस्त्र, काला तिल, काली उड़द और लोहे का दान करना चाहिए। शिवजी, हनुमानजी और शनिदेव की संयुक्त रूप से आराधना करना चाहिए। गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना चाहिए और सच्चे मन से अपने कर्मों का मूल्यांकन करना चाहिए।
भारत में कई स्थानों पर शनिदेव के विशेष मंदिर स्थित हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मंदिर हैं शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र)- यहां शनिदेव की प्रतिमा खुले आकाश के नीचे स्थापित है और गांव के घरों में कोई दरवाजा नहीं लगाया जाता है। कोकिलावन धाम (उत्तर प्रदेश)- वृंदावन के समीप स्थित यह स्थान भी शनिदेव की भक्ति के लिए जाना जाता है। थिरुनलार मंदिर (तमिलनाडु)- नवग्रह मंदिरों में शनिदेव का यह मंदिर महत्वपूर्ण माना जाता है। इन मंदिरों में दर्शन मात्र से लोगों की पीड़ाएं दूर हो जाती हैं और जीवन में सुख-शांति मिलती है।
शनिदेव को लेकर समाज में एक प्रकार का डर व्याप्त है। परंतु वास्तव में डरने की नहीं, समझने की जरूरत है। शनिदेव न्याय करते हैं, पक्षपात नहीं। वे अच्छाइयों को प्रोत्साहन देते हैं और बुराइयों को दंडित करते हैं। अगर जीवन में संघर्ष है, तो यह नहीं सोचना कि शनिदेव नाराज हैं, बल्कि यह मानना चाहिए कि शनिदेव सशक्त और सच्चा बना रहे हैं।
शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे पहला कदम होना चाहिए- आत्मनिरीक्षण। क्या हम अपने जीवन में सच्चे, ईमानदार और दूसरों के हितैषी हैं?, क्या हम अपने कर्मों में संयम, नियम और निष्ठा का पालन करते हैं? अगर आत्मनिरीक्षण में उत्तर “हाँ” है, तो शनिदेव का आशीर्वाद स्वतः प्राप्त होगा। अगर नहीं है, तो परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से करनी होगी। यही सही में शनिदेव का मार्ग है।
सनातन धर्म का मूल सिद्धांत है - “कर्म ही धर्म है।” शनि देव इस सिद्धांत के संरक्षक हैं। वे याद दिलाते हैं कि जीवन में कुछ भी छिपा नहीं है। हर कार्य का परिणाम मिलता है, और वही शनिदेव की दृष्टि है, जिससे कोई नहीं बच सकता है। इसलिए, यदि जीवन में शनिदेव की कृपा कोई चाहता हैं, तो कर्मों को शुद्ध करना चाहिए, अच्छे विचार, सत्य आचरण, सेवा और संयम, यही उनकी पूजा का सर्वोत्तम मार्ग है।
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